नई दिल्ली: 1991 में बने प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट अहम सुनवाई कर रहा है। सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका पर हो रही इस सुनवाई में मंगलवार को केंद्र सरकार को अपना पक्ष रखना था, लेकिन जानकारी के मुताबिक, केंद्र ने इसके लिए और वक्त मांगा है। प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के खिलाफ कई याचिकाएं दर्ज की गई हैं और इसे खारिज करने की मांग की गई है।
इससे पहले 9 सितंबर की सुनवाई में मुख्य न्यायाधीश यू यू ललित की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा था कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट के तीन न्यायाधीशों की पीठ द्वारा सुनवाई के लिए उपयुक्त है। इसने केंद्र को अपना जवाब दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय भी दिया था।
अदालत ने काशी के शाही परिवार और जमीयत उलेमा-ए-हिंद के प्रतिनिधियों सहित विभिन्न पक्षों द्वारा दायर हस्तक्षेप आवेदनों को ‘विवाद की प्रकृति और इसमें शामिल प्रश्नों को देखते हुए’ अनुमति दी और उन्हें मामले में अपने लिखित बयान दर्ज करने के लिए कहा था।
प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट क्या है
शीर्ष अदालत ने पिछले साल 12 मार्च को कानून के कुछ प्रावधानों की वैधता को चुनौती देने वाली वकील अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा था। प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के तहत, देश के विवादित धर्मस्थलों पर स्वामित्व और धार्मिक चरित्र के संबंध में 15 अगस्त 1947 से जारी यथास्थिति बनाए रखने का प्रावधान किया गया है।
Gyanvapi Mosque Row में भी उठा यही मुद्दा
वाराणसी की जिला अदालत में ज्ञानवापी मस्जिद विवाद पर सुनवाई जारी है। इस मामले में भी मुस्लिम पक्ष ने पूजा स्थल अधिनियम 1991 को यथावत रखने पर जोर दिया है। मुस्लिम पक्ष की दलील है कि इस अधिनियम पर फिर से विचार करने की जरूरत नहीं है।