भारत में सरकारी नौकरियों के प्रति युवा वर्ग का बहुत आकर्षण है। पेंशन का प्रावधान खत्म हो जाने के बावजूद इन्हें सरकारी नौकरी चाहिए। सरकारी विभागों में संविदा कर्मी के रूप में भी नौकरी करने को युवा लालायित रहते हैं ।
सरकारी नौकरी के प्रति इस आकर्षण का कारण क्या है? सबसे बड़ा आकर्षण ‘ऊपरी आमदनीं’ यानि रिश्वत खोरी का है। दूसरा कारण है निथल्लापन, लापरवाही या कर्त्तव्य के प्रति उदासीनता।
शायद ही कोई दिन ऐसा हो जिस दिन कोई न कोई रिश्वतखोर अधिकारी या कर्मचारी रिश्वत लेते रंगे हाथों न पकड़ा जाता हो। गैर जिम्मेदारी या कामचोरी का यह आलम है कि औचक निरीक्षण में प्राथमिक व माध्यमिक स्कूलों के शिक्षक तथा प्राथमिक एवं सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों का स्टाफ गैरहाज़िर मिलता है।
सरकारी नौकरी के प्रति इस आकर्षण का लाभ अवसर वादी नेता और धूर्त ठग खुब उठाते हैं। लालू प्रसाद के लाल तेजस्वी यादव ने बिहार के नौजवानों को झांसा दिया कि जिस दिन वे सत्ता में आयेंगे, उसी दिन 10 लाख युवकों को सरकारी नौकरी दिला देंगे। उप मुख्यमंत्री बने महीनों हो गए, एक नौकरी भी नहीं दिलवाई, नौकरी मांगने वालों पर लाठीचार्ज जरूर करवा दिया।
सरकारी नौकरी की चाहत वालों को ठग भी खुब शिकार बनाते हैं। 22 नवंबर को लखनऊ स्थित आयकर मुख्यालय की कैंटीन में ऐसा ही घोटाला पकड़ा गया। एक महिला नौजवान लड़के-लड़कियों का इंटरव्यू ले रही थी। 10 लाख रुपये में आयकर इंस्पेक्टर नियुक्त कराने का वायदा था।
इसी प्रकार लखनऊ में ही एक महिला ने फर्जी कंपनी बनाकर 300 युक्त युवकों से एक करोड़ रुपये ठग लिए। विभूतिखंड पुलिस ने धोखेबाज महिला के विरुद्ध मुकदमा दर्ज किया है।
देश के आज़ाद होते ही रेवड़ियों की तरह सरकारी नौकरियां बांटी गई। डॉ. राममनोहर लोहिया ने पं. जवाहर लाल नेहरू को आगाह करते हुए कहा था कि कलमघिस्सुओं की फ़ौज को देश की छाती पर मत बैठाओ। नौजवानों को रचनात्मक कामों में लगाओ।
सरकारी नौकरियां बेरोजगारी दूर करने का विकल्प नहीं बन सकती। युवा वर्ग को स्वरोजगार के साधन जुटाकर रोजगार देने के प्रयास होने चाहियें।
गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’