6 तथा 7 अप्रैल 2023 को मुजफ्फरनगर नुमाइश मैदान पर एक अद्भुत, विलक्षण एवं शानदार पशु व कृषि प्रदर्शनी सम्पन्न हुई। प्रदर्शनी में हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश से उत्तम श्रेष्ठ नस्लों की गाय, बैल, भैंस, बकरी, घोड़े, मेंढे व सांड आदि प्रदर्शित किये गए। खेती किसानी में काम आने वाली मशीनरी, बीजों, कृषि उपकरणों, कृषिजन्म पदार्थों आदि के लगभग 130 स्टाल लगाये गए। प्रदर्शनी में किसानों व पशु पालकों के ज्ञानवर्द्धन और जानकारी हेतु देश के प्रमुख वैज्ञानिक व विशेषज्ञ उपस्थित रहे। प्रदर्शनी को देखने आये किसानों के लिए सामूहिक भंडारे का भी प्रबंध रखा गया। समापन समारोह में प्रतिभागियों को लाखों रूपये के पुरुस्कार प्रदान किये गये। किसानों की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिये शासन की प्रतिबद्धता इसी से प्रकट है की प्रदर्शनी में 5 केंद्रीय मंत्री उपस्थित हुए।
केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन गड़करी ने कहा कि बदली हुई परिस्थिति में किसान भाइयों को गन्ना, गेहूं, धान की खेती के साथ दलहन, तिलहन, व अन्य जिंसों की खेती तथा डेयरी उत्पादों के विकास पर ध्यान देना होगा। हम 16 लाख करोड़ रूपये का खनिज तेल आयात करते हैं। गन्ना व धान से बना इथनॉल इसमें सहायक होगा। देश को डेढ़ लाख करोड़ रूपये का खाद्य तेल आयात करना पड़ता है। दालों का उत्पादन भी मांग से कम है।
जिला प्रदर्शनी का आगाज़ 1900 के उत्तरार्द्ध में घोड़ों की नुमाइश के रूप में हुआ था। तब सेना, पुलिस, रजवाड़ों, जमींदारों और आम आदमी तक की घोडों-घोड़ियों में रुचि थी। नुमाइश मैदान कम्पनी बाग से लेकर गन्ना रिचर्स सेंटर तक फैला था। तमाम उत्तर भारत से घोड़ों के बेचने व खरीदने वाले गुजफ्फरनगर की घोड़ा प्रदर्शनी में सम्मिलित होते थे।
विभाजन के बाद प्रदर्शनी का विशाल मैदान सिकुड़ता चला गया और पुराना स्वरूप समाप्त हो गया। जिला उद्योग एवं कृषि प्रदर्शनी के नाम पर उच्च वर्ग की चापलूस चौकड़ी, अधिकारियों व धनी सम्पन्न लोगों के मनोरंजन, नाच रंग का माध्यम बनकर रह गया। जनता को हलवा-पराठा, सरकस नौटंकी में उलझाकर कृषि प्रदर्शनी के नाम से 2-4 स्टाल लगाने की परम्परा चल पड़ी।
यद्यपि पशु व कृषि प्रदर्शनी 2 दिन की ही थी किन्तु इस प्रदर्शनी ने अपने नाम को सार्थक किया है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद यह शानदार व प्रशंसनीय प्रयास है। इसके लिए केन्द्रीय राज्य पशुपालन मंत्री विशेष रूप से बधाई के पात्र हैं। उनसे आशा की जाती है कि परम्परागत होने वाली वार्षिक प्रदर्शनी में भी वे कृषि, पशुपालन व डेयरी, गुड़-खांडसारी तथा प्रसंस्करण को समुचित स्थान दिलायेंगे।
गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’