सुप्रीम कोर्ट ने कुछ सालों पहले भारत में धारा 377 हटा दी थी, जिसके बाद समलैंगिक संबंधों को कानूनी मान्यता मिल गई थी। इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय अब समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के लिए सुनवाई कर रहा है, जिसका देश भर में विरोध भी बढ़ता जा रहा है।
यह है पूरा मामला
जयपुर में बुधवार को महिलाओं के एक समूह ने कलेक्टर को राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौंपा है। ज्ञापन में महिलाओं ने समलैंगिक विवाह को देश की संस्कृति के विरुद्ध बताया है। महिलाओं की मांग है कि देश में समलैंगिक विवाहों को मान्यता न दी जाए। महिलाओं का कहना है कि समलैंगिक विवाह भारतीय विवाह संस्कार पर अंतरराष्ट्रीय आघात है।
महिलाओं ने किया विरोध
डाॅ. सुनीता अग्रवाल ने कहा कि समलैंगिक विवाह को मान्यता देने से सांस्कृतिक मूल्यों का हनन होगा। कानून बनाने का अधिकार सिर्फ संसद को है, न्यायालय इस मामले में हस्तक्षेप न करे। संसद का काम संसद को ही करने दें। विरोध में शामिल शालिनी राव ने कहा की भारत के सामाजिक ढांचे में विवाह एक पवित्र संस्कार है और उसका उद्देश्य मानव जाति का उत्थान है। इसमें जैविक पुरुष और जैविक महिला के मध्य विवाह को ही मान्यता दी गई है। अरुणा शर्मा ने बताया की समलैंगिक विवाह जैसे मुद्दे पर न्यायालय की सक्रियता का समर्थन मिला तो यह भारत की संस्कृति को कमजोर करेगा। महिलाओं का कहना है कि न्यायपालिका को विधायिका के क्षेत्र में अतिक्रमण नही करना चाहिए। समलैंगिक विवाह के विषय में न्यायालय को सुनवाई नहीं करनी चाहिए।