दानिश ने काट दी अपने बुर्जुगों की नाक !

24 सितंबर। भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी के ‘असंसदीय’ शब्दों को लेकर बसपा सांसद दानिश अली के साथ ही कांग्रेस सहित विपक्षी दलों का गाली ब्रिगेड टॉप गेयर में है। दानिश ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को नीच कहने और चन्द्रमान अभियान का श्रेय मोदी को देने की निन्दा करते हुए कहा कि जो बीज कांग्रेस के प्रधानमंत्रियों ने बोये, उनकी फसल नरेन्द्र मोदी काट रहा है। मोदी को नीच, नाली का कीड़ा, कुत्ते की मौत मरने वाला जैसे अपशब्द कांग्रेस के लिए आम शब्द बन चुके हैं तो कांग्रेस को कोई परेशानी नहीं हुई लेकिन रमेश बिधूड़ी ने आतंकी बता दिया तो हंगामा हो गया और जिस तरह से मोदी के टुकड़े-टुकड़े कहने पर राहुल ने इमरान मसूद को गले लगाया था ठीक वैसे ही दानिश अली को गले लगाने में देरी नहीं की। मामला चूंकि लोकसभा अध्यक्ष के पास पहुंच चुका है, अतः इस पर विचार व्यक्त करना अभी उचित नहीं है।

खुद को टीपू सुल्तान का वंशज बताने वाला और रेलवे स्टेशन के नवीनीकरण समारोह में भारत माता का जयघोष लगाने वाले एमएलसी हरिसिंह का गिरेबाँ पकड़ने वाला दानिश आखिर है कौन जो अपने नाम के आगे ‘कुँवर’ लिखता है? अपनी उल-जलूल हरकतों और अभद्र भाषा व आचरण से वह चर्चा में है लेकिन नाम के आगे कुँवर लिखने वाले दानिश ने खुद को टीपू सुल्तान का वंशज बता कर न सिर्फ अपने पूर्वजों के नाम को बट्टा लगाया है बल्कि सफेद झूठ बोलकर कठमुल्लावादी जहनियत वाले समूह को प्रोत्साहित करने का ओछा प्रयास किया है।

दानिश अपने समय के दानिशवर, सच्चे धर्म निरपेक्ष, मृदुभाषी, बदजुबानी और बेहूदगी से कोसों दूर रहने वाले, सादगी पसन्द, हिन्दू. मुसलमानों में समान रूप से लोकप्रिय जन नेता नहीं, अपितु जनसेवक कुँवर महमूद अली का पौत्र है।

यह कुँवर महमूद अली जैसे उदारवादी और पुरातन भारतीय
संस्कृति तथा भारतीय परम्पराओं को अपने जीवन में ढालने वाले आदर्शवादी नेता का पूरा परिचय देने का समय नहीं है। इतना ही लिखा जाना समीचीन है कि कुँवर साहब अपने सद् विचारों व सद् आचरणों के कारण पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपना ऊंचा स्थान रखते थे। चौ. चरण सिंह की नीतियों से प्रभावित होकर उन्होंने सन् 1967 में चौ.चरण सिंह के साथ कांग्रेस छोड़ी। भारतीय क्रान्ति दल के संस्थापक सदस्य रहे। लोकदल कार्यकारिणी के सदस्य रहे। जनता पार्टी संसदीय दल मे उप नेता रहे।

दानिश खुद को टीपू सुल्तान जैसे तास्सुबी जहनियत वाले लाखों हिंदुओं के हत्यारे का वंशज बताता है जबकि असलियत है कि उसका खूनी रिश्ता उज्जैन के राजाभोज व सम्राट विक्रमादित्य के शहर से था। कुंवर महमूद अली के वंशज भोजीसिंह परमार वंशी राजपूत थे। सवंत 1411 में फीरोजशाह तुगलक के शासनकाल में इन्होंने हिन्दू धर्म छोड़ कर इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया। (कहा नहीं जा सकता कि तलवार के जोर से, अथवा बहकाने-फुसलाने से)।

कुंवर महमूद अली के पुरखे उज्जैन छोड़ कर मेरठ जिले के जोगीपुरा में बस गए। कुंवर महमूद अल्ली के पिता रावहकीम अली खां और बाद में कुंवर महमूद अली ने राजपूती परम्पराओं व भारतीय संस्कारों को नहीं त्यागा। उर्दू व फारसी के जानकार होते हुए भी उन्होंने संस्कृत ग्रंथों का भी अध्ययन किया। जिस प्रकार चौ. चरण सिंह विष्णु शरण दुबलिश को अपना निकटस्थ मानते थे वैसे ही कुंवर महमूद अली को भी मानते थे।

दानिश ऐसे श्रेष्ठ परमार वंश और आदर्शवादी दादा का पोता है या टीपू सुल्तान जैसे निर्दयी अत्याचारी हत्यारे का वंशज है जिसने अपनी तलवार पर खुदवा दिया था कि यह 10 हजार हिन्दुओं का सिर कलम करने वाली टीपू की तलवार है?

जहां तक रमेश बिधूड़ी का संबंध है, वह तो छाती ठोक कर कहता है कि वह पराक्रमी मिहिर भोज की सन्तान है जिसके पराक्रम से अरब के हमलावर दुम दबा कर भागे थे।

यह निश्चित है कि बिधूड़ी को नुपूर शर्मा की तरह बनवास नहीं दिया जा सकता।

गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’

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