4 अक्तूबर: भारत की चतुर्दिक प्रगति तथा दुनिया में हमारे बढ़ते प्रभाव व प्रसिद्धि से आक्रान्त चीन के दलाल के इशारे पर उसका भोपू बजाने वाले लोग कल से कैसे हलकान हैं, यह पूरा देश सुन और देख रहा है। विदेशी आकाओं के ये वित्तपोषित ताबेदार खुद को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हल्कारे और गरीबों के मसीहा, लोकतंत्र के अलमबरदार तथा सोशल एक्टीविस्ट कहते हैं।
अजीब तमाशा है कि आपातकाल में प्रेस का गला घोटने वाले, आगरा के एक अखबार के विरुद्ध उत्तर प्रदेश भर में अपने चमचों से हल्लाबोल अभियान चलवाने वाले, अर्नव गोस्वामी को 200 प्यादे भेजकर आतंकी की तरह घर से उठवाने वाले, बिहार में अंगूठा टेक मुख्यमंत्री और दर्जा 9 फेल, दसवी पास राजदुलारों को मंत्री बनवाने वाले वंशवादी नेता के इशारे पर पत्रकार मनीष कश्यप पर रासुका लगवाने वाले घड़ियाली आंसू बहा कर मीडिया के दमन का रोना रो रहे हैं।
पाप का घड़ा एक दिन तो फूटता ही है। प्रेस की स्वतंत्रता पर भले ही वंशवादी, परिवारवादी नेता व उनके ढिंढोरची कितनी ही कलाकारी दिखा लें, झूठ-मक्कारी का तिलिस्म एक न एक दिन टूटता ही है, यद्यपि अभी यह अर्द्ध विराम है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर दोगलापन दिखाने वाले न्यायधीशों का भ्रमजाल भी एक न एक दिन टूटना ही है। परिवारवादी कैसे स्वतंत्र, निर्भीक, धाकड़ पत्रकारों का दमन करते हैं, बिहार इसका जीता-जागता उदाहरण है। मनीष कश्यप के चार बैंक खातों को बन्द कर 42 लाख रुपये जप्त किये गए। पुलिस ने खाट-खटोला तक कुर्क कर लिया। 14 मुकदमे कायम कर दिए। एनएसए में जेल में ठूस दिया।
लालू-नीतीश के राज में पत्रकारों की नृशंस हत्यायें हुई। 18 अगस्त 2023 को अररिया थाना क्षेत्र के रानीगंज में गुंडों ने दैनिक जागरण के पत्रकार विमल कुमार यादव की उनके घर के सामने दिन दहाड़े हत्या कर दी। इससे पूर्व 2019 में उनके भाई की हत्या कर दी गई थी।
13 मई 2016 को सिवान रेलवे स्टेशन पर पत्रकार राजदेव रंजन की हत्या की गई। लालू के सिपहसालार शहाबुद्दीन सहित 8 लोगों के नाम सामने आये। 2022 में बेगूसराय में पत्रकार सुभाष कुमार की हत्या हुई। 2021 में सुपौल में पत्रकार बुद्धिनाथ की पीट-पीटकर हत्या। अगस्त 2021 में पूर्वी चम्पारण के पत्रकार मनीष सिंह की हत्या कर शव नाले में डाला। 14 नवम्बर 2021 को पूर्णिया के पत्रकार रिंटू सिंह की हत्या हुई। तब भी नीतीश कुमार मुख्यमंत्री थे। 2022 में सुपौल के पत्रकार महाशंकर पाठक की पीट पीट कर हत्या कर दी गई। शहाबुद्दीन और उसके गुर्गों ने ‘हिन्दुस्तान’ के एक ब्यूरोचीफ की उनके कार्यालय में घुसकर हत्या कर दी थी।
समाजवाद धर्मनिरपेक्षता, हिन्दू-मुस्लिम भाईचारा के नारे लगाने वाले कैसे जे.पी.,
डॉ. लोहिया और कर्पूरी का नाम लेकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोटते हैं, यह पोल अब खुलनी शुरू हुई है। आगे-आगे नतीजे ठीक ही आने चाहियें, यह लोकतंत्र का तकाज़ा है।
गोविन्द वर्मा