8 अक्टूबर: उत्तर प्रदेश शासन के पुराने निर्णय के अनुसार प्रदेश भर के तमाम विभागों के अधिकारी एक निश्चित तिथि पर तहसीलों पर पहुंच कर जनता की शिकायतों का मौके पर ही निस्तारण करते हैं। इस प्रकार पहले की सरकार, और अब योगी आदित्यनाथ की सरकार, शासन-प्रशासन की दूषित कार्यप्रणाली से पीड़ितों की समस्या का हल निकालने के वजाए उन्हें नाहक परेशान कर रही हैं। उनकी यह आशा निराधार सिद्ध हो रही हैं कि तहसीलों में पहुंच कर न्याय मिल जाएगा।
अभी 7 अक्तूबर-2023 को मुनफ्फरनगर जनपद के सभी तहसील मुख्यालयों पर ‘सम्पूर्ण समाधान दिवस’ की परम्परागत रिहर्सल दोहराई गई। सदर तहसील में तो जिला अधिकारी अरविन्द मल्लप्पा बंगारी व वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक संजीव सुमन भी उपस्थित थे। यहां 59 शिकायतें आईं किन्तु मात्र दो का ही समाधान हो पाया।
कहीं-कहीं तो कमिश्नर और डी.आई.जी. भी सम्पूर्ण समाधान दिवस में उपस्थित होते हैं लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात ! सम्पूर्ण समाधान दिवस पर कभी-कभी इतनी अजीबोगरीब स्थिति हो जाती है कि कई विभागों के अधिकारी व विभागाध्यक्ष इन बैठकों से गैर हाज़िर मिलते हैं। कलक्टर साहब बहादुर इन निकम्मे और ढीठ अधिकारियों का कुछ बिगाड़ नहीं सकते, सिवाय उनका एक दिन का वेतन काटने के। इतना पैसा तो साहब का चपरासी टिप में ले लेता है।
सम्पूर्ण समाधान दिवस अंधेर नगरी चौपट राजा की कहावत को चरितार्थ करता है- जनता की आंखों में धूल झोकने भर की नौटंकी ! पीडितों का पैसा व समय खराब होता है और सरकारी अधिकारी रुटीन के काम से वंचित हो जाते हैं।
यदि सरकार सुशासन व न्याय का दावा करती है तो इस ड्रामेटिक व्यवस्था में सुधार करना होगा। बहुत से कार्य मौके पर होना सम्भव नहीं हैं, इनके समाधान के लिए समय मिलना चाहिये। जिला अधिकारी पहले शिकायतों की स्क्रूटनी करें, फिर एक निश्चित समय के भीतर उनके समाधान का आदेश पारित करें और शिकायतकर्ता तथा संबंधित अधिकारी को तहसील में बुला कर अपना फैसला सुनायें। डी.एम.को व्यापक अधिकार हों कि वे नाकारा निकम्मे सरकारी मुलाजिमों को सबक सिखा सकें और झूठी शिकायत करने वाले को भी दंडित कर सकें। इसके बिना समाधान की बात दिल को बहलाने का एक चालाकी भरा प्रयास है।
गोविन्द वर्मा