17 अक्टूबर: मुजफ्फरनगर से हजारों (10482 किमी ) किलोमीटर दूर कनाडा से मुझे एक वॉइस मैसेज मिला। यह सन्देश उपेन्द्र तलवार ने अभी-अभी 12 अक्टूबर 2023 को भेजा है। सन्देश में खालिस्तानी सरगना गुरपतवंत सिंह पन्नू या प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की भारत विरोधी हरकतों या कारगुजारियों का कोई उल्लेख नहीं है लेकिन उपेन्द्र के इस सन्देश ने हृदय को भीतर तक तरंगित कर दिया।
पहले बता दूं कि उपेन्द्र तलवार है कौन। ये साठ के दशक में ‘देहात’ के फोटोग्राफर हुआ करते थे। मुजफ्फरनगर के प्रथम आर्किटेक्ट (वास्तुकार) तलवार साहब के पुत्र हैं। मुजफ्फरनगर के रानी झांसी पार्क के सामने एस.डी. कॉलेज मार्केट में इनका स्टूडियो था। यहां से दिल्ली चले गये थे और वहां से कनाडा। 40 वर्षों से मैं इनका फोन नम्बर तलाश रहा था, और ये मेरा फोन नंबर ढूंढ़ रहे थे कि फेसबुक की आई.डी. से इन्हें मेरा सम्पर्क नम्बर मिल गया।
उपेन्द्र तलवार से अक्सर मोबाइल फोन पर बातें होती रहती हैं। इसी 12 अक्टूबर को उन्होंने एक ऑडियो मैसेज भेजा। मैसेज क्या, दरअसल यह सन् 1966 में रिलीज़ हुई प्रसिद्ध सिने निर्देशक असित सेन की महान् फिल्म ‘ममता’ का एक गीत है जिसे स्वर सम्राज्ञी लता मंगेशकर ने गाया है। गीत के बोल हैं- ‘रहें न रहें हम, महका करेंगे-बनके कली, बन के सबा- बाग-ए-वफ़ा में।’ प्रेम, समर्पण, बलिदान और जांनिसारी की संवेदनाओं को साकार रूप में उतारने वाले इस हृदय स्पर्शी गीत की रचना मजरूह सुल्तानपुरी ने की थी और संगीत रोशन ने दिया था।
‘ममता’ भारत के मध्यम वर्ग की नारी के संघर्ष, पीड़ा, सामाजिक विडंबनाओं और महिला उत्पीड़न की अनकही मार्मिक सत्यकथाओं को रुपहले पर्दे पर साकार करने वाली अनूठी फिल्म थी। वस्तुतः ममता बंगला लेखक निहार रंजन की फिल्म ‘फाल्गुनी’ का हिन्दी रिमेक है।

अपने समय की श्रेष्ठ अभिनेत्री सुचित्रा सेन ने फिल्म में माँ और लड़की का दोहरा श्रेष्ठ अभिनय किया है। अशोक कुमार और धर्मेन्द्र अपनी-अपनी भूमिकाओं में खरे उतरे हैं। कृष्णचन्दर ने अपनी लेखनी का हुनर दिखाते हुए संवेदनाओं से ओत प्रोत संवाद लिखे हैं। देवयानी एक गरीब पिता की बेटी है जो कर्ज उतारने के लिए अपनी पुत्री (देवयानी) का विवाह उम्रदराज शराबी से करने को मजबूर है। देवयानी हालात को गर्दिश में आकर तवायफ बन जाती है और नन्हीं बेटी को कभी न मिलने की शर्त पर अनाथालय छोड़ आती है। उसका प्रेमी मोनिष राय इंग्लैंड से लौट आता है लेकिन देवयानी को खोने के बाद अविवाहित ही रहता हैं। वह देवयानी की बेटी सुपर्णा की अपनी पुत्री की भांति परवरिश करता है। सारी कहानी माँ के प्यार और बलिदान की उच्च धारणाओं के इर्द-गिर्द घूमती है।
फिल्म की समालोचना लिखने का न विचार है, न क्षमता। इतना ज़रूर कहेंगे कि जब ‘ममता’ का छायांकन हुआ, तब का समय भारतीय फिल्म जगत का स्वर्णयुग था। वह मानवीय संवेदनाओं को पर्दे पर सामर्थ्यपूर्वक उकेरने का आदर्श काल था जिसमें कथानक, अभिनय, गीत संगीत सभी कुछ उच्चस्तरीय होता था। दर्शक सिने हॉल से प्रफुल्लित होकर निकलता था, या आँसू पोछता हुआ। नहीं लगता कि पारवारिक फिल्मों का वह युग फिर लौटेगा। उपेन्द्र ने एक गीत का ऑडियो भेज कर उस बीते ज़माने की याद दिला दी, उनका शुक्रिया!
गोविन्द वर्मा