18 नवंबर: हिन्दी साहित्य-जगत का देदीप्यमान नक्षत्र पांच दशकों तक अविकल रूप से चलने वाली लेखनी से प्रकाश बिखरता हुआ 17 नवंबर 2023 को गाजियाबाद में अस्त हो गया। सहारनपुर के ग्राम जड़ौदा पांडा (तहसील देवबंद) में 10 जुलाई, 1932 को जन्मे सेवा राम यात्री ने अपने करियर की शुरुआत शिक्षक के रूप में की। आगरा विश्वविद्यालय से राजनीतिशास्त्र एवं हिन्दी साहित्य मे एम. ए. करने के बाद मध्यप्रदेश, खुर्जा, गाजियाबाद आदि शहरों के महाविद्यालयों में हिन्दी प्रवक्ता के रूप में कार्यरत रहे।
उनके जीवन का अधिकांश समय गाजियाबाद में बीता। शिक्षा जगत की सेवा के साथ साहित्य सृजन गाजियाबाद में ही हुआ। किशोर अवस्था में मैंने (गोविन्द वर्मा) से. रा. यात्री के नाम से रची उनकी लघुकथायें व कहानियां साप्ताहिक हिन्दुस्तान, धर्मयुग, ज्ञानोदय, सारिका, कादम्बिनी, कहानी आदि पत्रिकाओं में चाव से पढ़ीं। जड़ौदा पांडा निवासी चंद्र मोहन त्यागी ने मुझे बताया था- कि ये ‘से.रा. यात्री’ सेवाराम यात्री हैं, जिनका जन्म हमारे गांव, मुजफ्फरनगर के समीप सहारनपुर जिले के जड़ौदा पांडा ग्राम में हुआ है। जब हिन्दी पत्रिकाओं की धूम थी तब से. रा. यात्री की कहानियां लाखों-करोड़ों पाठकों को मोहती थीं। उनकी रचनायें यथार्थ का चित्रण करने वाली तथा दिशाबोधक थीं। यात्री जी की लगभग 300 कहानियों में अकर्मक क्रिया, अभयदान, अभिभूत, अर्थ कामना, आकाशचारी, आखिरी पड़ाव, आत्महन्ता की डायरी, आदमी कहाँ है, उखड़े हुए, एक युद्ध यह भी को प्रतिनिधि साहित्य के रूप में देखा जा सकता है। दराज़ों में बन्द दस्तावेज़, लौटते हुए, कई अंधेरों के पार, अपरिचित शेष, चाँदनी के आरपार आदि 32 उपन्यास, 18 कहानी संग्रह, 2 व्यंग्य संग्रह, संस्मरण आदि विशाल रचना संसार है। दो दर्जन से अधिक शोधार्थियों ने उन पर शोध किया है। अनेक संस्थानों ने सम्मानित-पुरस्कृत किया। 18 नवंबर को उन्हें
कविनगर (गाज़ियाबाद) स्थित आवास पर सम्मानित किया जाना था कि 24 घंटे पूर्व ही अनन्त यात्रा पर निकल गए।
से. रा. यात्री ने अपनी रचनाओं से हिन्दी साहित्य के ख़जाने को समृद्ध करने के साथ-साथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर व मुज़फ्फरनगर के नाम को भी रोशन किया है। हिंदी साहित्य जगत के अनेक विद्वानों के साथ ही मुज़फ्फरनगर के साहित्यकारों, कवियों- डॉ. प्रदीप जैन, मनु स्वामी, डॉ. पुष्पलता, राजगोपाल वर्मा आदि ने भी यात्री जी के प्रयाण पर श्रद्धांजलि अर्पित की है।
विष्णु प्रभाकर, गिरिराज किशोर, शेरजंग, ओम प्रकाश वाल्मीकि, आनन्द प्रकाश जैन आदि साहित्यकार मुजफ्फरनगर से संबद्ध रहे हैं। वर्तमान में मुजफ्फरनगर के अनेक कलमकारों का साहित्य सृजन जारी है।
यह जिला साहित्यिक, सांस्कृतिक गतिविधियों के बजाय महापंचायतों, धरनों, घेराव और रास्ता जाम के साथ दंगों-विवादों के लिए पहचाना जाता है किन्तु यहां के साहित्यकारों, कलमकारों कला-कर्मियों की स्मृति में भी कुछ सटीक कार्य किया जाना चाहिए। इस मनोवृति का आभाव खलने वाला है।
अफसोस है कि महावीर चौक स्थित जिला पुस्तकालय में जनपद के साहित्यकारों व कला जगत की हस्तियों की स्मृति में कक्ष, रंगमंच, पुस्तकालय आदि बनाने के बजाय यहां बैठकें व सम्मेलन करने को बड़ा सभागार बनाया जा रहा है।
हमारा सुझाव है कि जिला पुस्तकालय की भूमि पर एक विशेष पुस्तकालय या कक्ष अलग से बनाया जाए जिसमें मुज़फ्फरनगर के दिवंगत तथा वर्तमान साहित्यकारों की सभी पुस्तकें उपलब्ध कराई जाएं और पुस्तकालय कक्ष में पुस्तकों के लेखकों, रचनाकारों के बड़े आकार के फोटोग्राफ़ लगाये जाएं।
मुजफ्फरनगर के साहित्य प्रेमियों, साहित्यिक तथा सामाजिक व सांस्कृतिक संगठनों, शिक्षा क्षेत्र के गणमान्य लोगों को इसके लिए वातावरण बनाना चाहिए ताकि शासन व स्थानीय अधिकारी इस दिशा में सक्रिय हों।
इन पंक्तियों के साथ हम से. रा. यात्री को अनन्त यात्रा के लिए निकल जाने पर हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
गोविन्द वर्मा