7 दिसंबर। के. चंद्रशेखर राव के भ्रष्टाचार व वंशवादी विचारों के कारण तेलंगाना की जनता द्वारा कांग्रेस को सत्ता सौंपे जाना एक मज़बूरी थी, इस सच्चाई को कांग्रेस स्वीकार नहीं कर रही है। सोनिया गाँधी, प्रियंका व राहुल गाँधी इस ख़ाम-ख्याली में जी रहे हैं कि तेलंगाना के जनमानस ने राहुल गाँधी की नरेंद्र मोदी के प्रति गाली-गलौच, अडानी चालीसा पढ़ने व उत्तर-दक्षिण की बातें सुनकर ही कांग्रेस को सत्ता मिली है।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता, पूर्व वित्तमंत्री पी. चिदंबरम के पुत्र कार्ति चिदंबरम ने चार राज्यों के चुनाव परिणाम घोषित होते ही कहा था कि कांग्रेस को अब उत्तर-दक्षिण की राजनीति करनी चाहिए। इससे पूर्व राहुल गाँधी ने वायनाड (केरल) में कहा था कि उत्तर के मतदाताओं के मुकाबले दक्षिण भारत के मतदाता अधिक समझदार हैं। सोनिया-राहुल की इस विभाजनकारी रणनीति को आगे बढ़ाते हुए कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद के दावेदार रेवंत रेड्डी ने हाई कमान की नीति-रीति को समझते हुए कहना शुरू किया कि बिहार के डीएनए के मुकाबले दक्षिण भारत का डीएनए कही ज्यादा श्रेष्ट व प्रभावी है। केसीआर को तेलंगाना की जनता ने इसलिए सत्ता से हटाया कि उनके पुरखों का डीएनए बिहार का था। कल ही घमंडिया गठबंधन के एक सांसद सेंथिल बालाजी ने उत्तरी राज्यों को गौमूत्र से जोड़कर अभद्र व विभाजनकारी टिप्पणी की थी।
रेवंत रेड्डी की डीएनए वाली टिप्पणी का पूरे भारत में घोर विरोध हो रहा है। सोचा जा रहा था कि सोनिया, प्रियंका व राहुल अपने नेता की विभाजनकारी टिप्पणी का विरोध करेंगे और श्री रेड्डी को इसे वापस लेने की सलाह देंगे आज रेवंत रेड्डी के शपथ ग्रहण समारोह में माँ-बेटी व बेटा, तीनो ही मौजूद थे, उन्होंने बिहार के डीएनए वाली अभद्र टिप्पणी पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की, न ही इसे वापस लेने का निर्देश दिया, इन तीनों का मौन रहना संकेत देता है कि अब कांग्रेस उत्तर-दक्षिण की विभाजनकारी नीति अपनाकर केंद्र की सत्ता हथियाना चाहती है।
सोनिया आदि यह भूल जाते हैं कि भारतीय संस्कृति का आधार-तत्व सदियों से दक्षिण भारत में मौजूद है। रामेश्वरम, तिरुपति तिरुमाला मंदिर, भगवान शिव का विरुपाक्ष मंदिर, भगवान अयप्पा का सबरीमाला मंदिर, नंजुंदेश्वर मंदिर, श्री वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर आदि दक्षिण भारत में ही हैं। समूचे भारत को एक सूत्र में जोड़ने के लिए सदियों पहले आदिशंकराचार्य ने चार मठों की स्थापना की थी। वर्त्तमान में देखे तो राजनीति के मैदान में चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य, डॉ. सर्वपल्ली राधा कृषणन अय्यर, के. कामराज व डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम, भी दक्षिण से ही थे जिन्होंने उत्तर-दक्षिण की ओछी राजनीति कभी नहीं की।
लोग पूछते हैं कि सत्ता कब्ज़ाने के लिए कांग्रेस की यह त्रिमूर्ति कहाँ तक गिरेगी ? यह समझ लेना चाहिए कि इनकी गिरावट की कोई सीमा निर्धारित नहीं है।
गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’