गत 24 नवंबर को सर्वोच्च न्यायालय की पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति सूर्यकान्त, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्त, न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां शामिल थे, ने एक अति महत्वपूर्ण फैसला किया। पीठ ने नोएडा ऑथोर्टी व उत्तर प्रदेश सरकार से कहा है कि वे गत 15 वर्षों में नोएडा में किये गए भूमि अधिग्रहण व मुआवजा भुगतान के सभी मामलों की जांच करायें।
शीर्ष न्यायालय ने नोएडा प्राधिकरण तथा राज्य सरकार से पूछा है कि जिन अधिकारियों ने भूमि अधिग्रहण के मुआवजा भुगतान में करोड़ों रुपये का फर्जीवाड़ा किया है, आरोप सिद्ध होने के बावजूद उनके विरुद्ध अभी तक कार्यवाही क्यूं नहीं की गई ?
स्थापना से लेकर आज तक नोएडा घोटालों, धांधलियों, लूट-खसोट, नेताओं, अधिकारियों, माफियाओं की तिगड़ी का कर्म-स्थल है। नोएडा भ्रष्टाचार रूपी महाभारत का कुरुक्षेत्र है जहां कौरव-पांडव आज भी युद्धरत हैं। नोएडा का आकर्षण भू-माफियाओं, मुनाफाखोर रियल एस्टेट बिल्डरों व सत्ता के दलालों को सदा से अपनी ओर खीचता रहा है।
नोएडा में चौथे स्तम्भ के आधार कहे जाने वाले पत्रकार और न्याय को तराजू में उठाने वाले न्यायपालिका के जज साहिबान भी उपकृत हुए हैं। नोएडा की गंगोत्री में डुबकी लगाना भला कौन नहीं चाहता है ?
हमें अच्छी तरह स्मरण है कि उत्तरप्रदेश में एक प्रमुख व आदर्श औद्योगिक नगर स्थापित करने को कौड़ियों के भाव किसानों से जमीनें छीनी गई थी। दो रुपये प्रति गज के मुआवजे के भुगतान के लिए भी किसानों को 20-20 बरस अदालतों की चौखट पर माथा रगड़ना पड़ा। रामबीर बिधूड़ी नौकरशाही-नेताओं व भू-माफियाओं की साठगांठ के कुचक्र के विरुद्ध उत्पन्न संघर्षशील नेता बने। वहां आज भी लूट-खसोट का बाज़ार गर्म है। एक किलो हीरे और दस करोड़ की नकदी बरामद होने के बाद भी भ्रष्ट अधिकारी को बचाने वाले नेताओं को शर्म नहीं आती।
सुप्रीम कोर्ट का कार्य फैसले सुनाने का है और तिगड़ी का काम अपनी गाड़ी चलाने का। क्या नोएडा की यह रफ्तार रुक सकेगी? नोएडा का नाम बहुत बदनाम हो चुका है। बेहतर होगा कि शहरों के नाम बदलने के क्रम में नोएडा में चलने वाली गतिविधियों के अनुरूप उसका नया नाम रख दिया जाए।
गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’