सहकारी कताई मिलों के बंद के बाद भी करोड़ों का घोटाला


75 वर्षों की स्वतंत्रता के बाद भी, जिसे अब अमृतकाल कहा जाता है, सरकारी मशीनरी अथवा प्रशासनतंत्र की स्थिति क्या है ? आम आदमी का इस भ्रष्टतंत्र से सामना रोज ही हो जाता है। सब इसके भुक्त भोगी हैं अतः यह चर्चा अभी बेमानी है। यहां हम एक ऐसे समाचार का उल्लेख कर रहे हैं जो सीधे वरिष्ठ अधिकारीयों द्वारा भष्ट्राचार व लूट-खसौट से जुड़ा है।

उत्तरप्रदेश के औद्योगिक विकास मंत्री नन्दगोपाल गुप्ता नंदी को एक बड़े घोटाले की सूचना मिली। इसकी जाँच उन्होंने संयुक्त आयुक्त उद्योग ऋषिरंजन गोयल से कराई तो दो वरिष्ठ अधिकारीयों का घोटाला सामने आ गया।

उत्तरप्रदेश की 11 सहकारी कताई मिलें 10 वर्षों पूर्व कुप्रबंध और बड़े घाटे के कारण बंद कर दी गयी थीं। इन मिलों में करोड़ों रुपये की मशीनरी व अरबों रुपये मूल्य की भूमि है। बंदी के कारण कीमती मशीनों में जंग लग चुका है और जमीनों पर घास-पूस-पतवार खड़ा है। मशीनरी व भूमि अब कबाड़ बन गए हैं।

बंद पड़ी मिलों की सुरक्षा और रख-रखाव के लिए शासन ने सहकारी कताई मिल संघ के खाते में 20 करोड़ रुपया स्थानान्तरित किया था। मिलों के महाप्रबंधक एनके सिंह व सचिव वीके मिश्र ने मिलों की देख-रेख व सफाई पर एक धेला खर्चा नहीं किया और सारा पैसा डकार गए। खरबों रुपये मूल्य की संपत्ति कबाड़ बन गई।

औद्योगिक विकास मंत्री श्री नंदी ने इस घोटाले की विस्तृत जाँच एसआईटी से कराने का आदेश दिया है।

इस प्रश्न को छोड़ भी दें कि 11 सहकारी कताई मिलों का दीवाला क्यों निकला, कौन इसके लिए दोषी हैं, फिर भी एक बड़ा प्रश्न यह है कि खरबों रुपये मूल्य की मशीनरी व जमीन कबाड़ा क्यों बनी ? यदि मिलें नहीं चल सकती थीं तो स्क्रैप बेच कर उस जमीन पर नये कारखाने क्यों नहीं चलाये गए ?स्पष्ट रूप से यह राष्ट्रीय क्षति है।

“देहात” का मुख्यमंत्री जी से सुझाव है कि वे इन मिलों की भूमि, शेडों व इमारतों को उन नये उद्यमियों को सौंपें जो उत्तरप्रदेश में कारखाने लगाने के इच्छुक हैं। इस कार्य में विलम्ब होने का मतलब है सार्वजनिक क्षति, जो किसी भी हालत में नहीं होनी चाहिए।

इसी के साथ मुख्यमंत्री जी से हमारा आग्रह है कि वे जनपद मुज़फ़्फ़रनगर के रोहना में दशकों से बंद पड़ी चीनी मिल की दूसरी यूनिट को या तो आरंभ करायें या उस स्थान का उपयोग करते हुए कोई दूसरा उपक्रम लगवाएं।

गोविन्द वर्मा

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