पश्चिमी बंगाल के पुरुलिया जिले के काशीपुर में बरेली (उत्तरप्रदेश) के तीन साधुओं को पीट-पीट कर बुरी गत बना दी गई। सौभाग्य से इस घटना की सूचना पुलिस को समय पर मिल गई, जिसने मौके पर पहुंच कर तीनों साधुओं की जान बचा ली अन्यथा भीड़ उन्हें पीट-पीट कर मार डालती। ये साधु उत्तर प्रदेश के बरेली से निजी वाहन लेकर पश्चिमी बंगाल के गंगासागर जा रहे थे, जहां उन्हें मकर संक्रान्ति के मौके पर गंगा स्नान करता था। पुरुलिया के पुलिस अधीक्षक अभिजीत बनर्जी का कहना था कि रास्ता भटकने पर वे गंगासागर का पता पूछ रहे थे किन्तु भाषा की कठिनाई के कारण उनकी पिटाई कर दी गई।
तृणमूल कांग्रेस के नेता शशि पांजा ने कहा कि गलतफहमी के कारण साधुओं की पिटाई हुई, भाजपा इसे साम्प्रदायिक रूप दे रही है। लोगों को शक हुआ कि साधु तीन लड़कियों को अपनी कार में डालकर उनका अपहरण करना चाहते हैं, इसलिए भीड़ एकत्र हो गई और साधुओं को पीटा गया। प्रश्न है कि भाषा न समझने के कारण भीड़ क्या तीन बूढ़े साधुओं को मार देने की अधिकारी थी ? भगवा वेशधारी 3 साधु क्या दिनदहाड़े भीड़ के सामने से 3 लड़कियों को उठा कर ले जाते?
कांग्रेस, वामपंथियों व मुस्लिम तुष्टीकरण में लगे दलों व नेताओं ने देश में हिंसक व द्वेष का वातावरण बना दिया है। ये नेता व एजेंडाधारी पत्रकार तथा सोशल मीडिया रातदिन अपप्रचार में लीन रहते हैं। खुद को सेक्यूलरवादी सिद्ध करने के लिए ये नेता साधु-संतों, हिन्दू व हिन्दुत्व के विरुद्ध जहर उगते रहते हैं। 21 अप्रैल, 2020 को महाराष्ट्र के पालघर में भदोही (उप्र) के साथ जूना अखाड़े के सन्त कल्पवृक्ष गिरि, साधु सुशील व कारचालक नीलेश की ईसाइयों की भीड़ ने पीट-पीटकर हत्या कर दी थी, पुलिस तमाशा देखती रही। इतना ही नहीं, पालघर हत्याकांड का विस्तृत्व कवरेज करने वाले पत्रकार अर्नव गोस्वामी का बुरी तरह उत्पीड़न किया गया।
अससुद्दीन, राहुल, अखिलेश, स्वामी प्रसाद जैसे अनेक लोग भड़काऊ प्रचार में जुटे हैं। इसका नतीजा यह है कि तिलक लगाने व कलावा बांधने वाले छात्रों को स्कूलों में प्रताड़ित किया जा रहा है। चार दिन पूर्व मुजफ्फरनगर के बुढ़ाना कस्बे की नगर पंचायत के पूर्व सदस्य अमित कुमार गांधी पर दूसरे सम्प्रदाय के 17 लोगों ने धारदार हथियारों से हमला कर दिया।
बहुसंख्यक समुदाय, साधु-सन्तों व भगवा वेशधारी लोगों के विरुद्ध साजिशन चलाये जा रहे अभियान के कारण पुरुलिया व पालघर जैसे कांड होते हैं।
गोविन्द वर्मा