‘आपातकाल देश के संवैधानिक इतिहास का सबसे शर्मनाक दौर’, धनखड़ ने कांग्रेस पर साधा निशाना

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका के बीच मुद्दे होंगे, लेकिन उन्हें सुनियोजित तरीके से सुलझाना होगा। उन्होंने अफसोस जताते हुए कहा कि विधायिका में कुछ ‘होमवर्क’ किए जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा, व्यवधानों की जगह बहस और बातचीत होनी चाहिए। 

उन्होंने इंदिरा गांधी सरकार में साल 1975 में ‘आपातकाल’ लगाए जाने का भी जिक्र किया और इसे देश के संवैधानिक इतिहास का सबसे ‘शर्मनाक दौर’ बताया। उन्होंने कहा कि लाखों लोगों को उनके मौलिक अधिकारों से वंचित कर दिया जाए। उन्हें जेल में डाल दिया जाए। सत्ता में बैठे लोग कभी भी इस स्तर तक नहीं गए थे।

Bound to be issues among three organs but need to be ironed out differences: Dhankhar

उन्होंने कहा, ‘तब हम उम्मीद करते थे कि न्यायपालिका सामने आएगी। दुर्भाग्य से, यह न्यायपालिका के लिए भी अंधकार का दौर था। हालांकि, देश के नौ उच्च न्यायालय ने एक स्वर में रुख अपनाया था कि आपातकाल हो या न हो, लोगों को उनके मौलिक अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता।’ 

उन्होंने कहा, ‘लोग चाहते थे कि काश एडीएम जबलपुर मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने नौ उच्च न्यायालयों के फैसले को पलटा नहीं होता।’ एडीएम जबलपुर मामला 1975 में आपातकाल लगाने से पैदा हुआ था। उन्होंने कहा, ‘उस फैसले का हिस्सा रहे दो न्यायाधीशों ने बाद में सार्वजनिक रूप से खेद जताया था।’ उन्होंने कहा, ‘जब हम संवैधानिक पद पर होते हैं, तो हमारे पास कोई बहाना नहीं होता है। हमारे पास बचने का कोई रास्ता नहीं होता है। हमें संविधान के भरोसे को साबित करना होता है।’

Bound to be issues among three organs but need to be ironed out differences: Dhankhar

धनखड़ कानून मंत्रालय के एक अभियान के उद्घाटन के मौके पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा, ‘संविधान ने हमें सब कुछ दिया है। अगर तीन संस्थान कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायका अपनी सीमाओं में रहें तो भारत की प्रतिभाएं चमत्कार कर सकती हैं।’ उपराष्ट्रपति ने कहा कि हर कोई कानून के दायरे में है। उन्होंने कहा, ‘जब सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया जाता है तो मैं बहुत दुखी होता हूं। हम कानून प्रवर्तन एजेंसियों से लोहा लेते हैं और एलान करते हैं कि हम जीत गए हैं।’

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