वरुण गांधी इस समय पूरी सियासत के केंद्र में आ गए हैं। भाजपा से उन्हें टिकट मिलेगा या नहीं, इस पर असमंजस बरकरार है। चर्चा यही है कि वरुण गांधी का टिकट कट सकता है। स्वयं उनकी मां मेनका गांधी पर भी संशय बरकरार है। दोनों में से किसी एक को ही टिकट मिलने की संभावना जताई जा रही है। लेकिन इसी बीच वरुण गांधी ने भी उम्मीदवारी का पर्चा खरीद कर अपने इरादे साफ कर दिए हैं। यानी यदि उन्हें भाजपा से टिकट नहीं दिया जाता है तो वे स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर अपनी दावेदारी पेश कर सकते हैं। चर्चा यही है कि भाजपा की केंद्रीय चुनाव समिति की शुक्रवार को होने वाली बैठक में इस पर अंतिम निर्णय लिया जा सकता है। यानी वरुण गांधी के भविष्य पर अगले 48 घंटे में निर्णय हो जाएगा।
वहीं, समाजवादी पार्टी भी इस पूरे प्रकरण पर नजर बनाए हुए है। रामगोपाल यादव ने बृहस्पतिवार को इस बात का इशारा कर दिया है कि यदि वरुण गांधी को भाजपा से टिकट नहीं मिला तो समाजवादी पार्टी उन्हें पीलीभीत से उम्मीदवार बना सकती है। इसके पहले समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी इसी तरह के संकेत दिए थे।
वरुण बगावती हुए तो गड़बड़ा सकता है मिशन 80 का प्लान
भाजपा नेता भी वरुण गांधी की लोकप्रियता को समझते हैं। यही कारण है कि वरुण गांधी पर कोई निर्णय करने के पहले पार्टी पूरी तरह सभी समीकरणों को समझने की कोशिश करेगी। पीएम मोदी के नाम पर चुनाव होने के बाद भी पीलीभीत की लोकसभा में वरुण गांधी को हराना किसी भी दल के उम्मीदवार के लिए आसान नहीं होगा। और यदि ऐसा होता है तो भाजपा का मिशन 80 यानी यूपी की सभी 80 लोकसभा सीटों पर जीतने का सपना बिखर सकता है।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि एक-एक सीटों पर जीत के लिए सब कुछ दांव पर लगाने की सोच रखने वाली पार्टी वरुण गांधी पर कोई नकारात्मक दांव खेलने की गलती नहीं करेगी। यानी इस समीकरण को ध्यान में रखें तो भाजपा नेतृत्व वरुण गांधी को पीलीभीत से चुनाव मैदान में उतार सकता है।
कहां फंसा है पेंच
क्या वरुण गांधी के ऊपर कोई पेंच फंसा है? अमर उजाला के इस प्रश्न पर भाजपा के एक नेता ने कहा कि यूपी की 25 सीटों पर अभी उम्मीदवारों के बारे में निर्णय होना है। इसमें पीलीभीत भी एक सीट है। इसलिए इसे अलग तरीके से देखने की कोई आवश्यकता नहीं है। उन्होंने कहा कि इस बार केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक में यूपी की सभी बाकी सीटों पर उम्मीदवारों के बारे में निर्णय किया जा सकता है।
हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी हर चुनावी सभाओं में राजनीतिक दलों में परिवारवाद के ऊपर हमला कर रहे हैं, ऐसे में एक ही परिवार में मां-बेटे को टिकट देना सही नहीं लगता है। ऐसे में मेनका गांधी या वरुण गांधी दोनों में से किसी एक को ही टिकट देने का समीकरण बन सकता है।