चौधरी साहब व आडवाणी जी का अलंकरण !

किसान मसीहा चौधरी चरण सिंह को देश का सर्वोच्च सम्मान ‘भारतरत्न’ प्रदान कराने और इस सम्मान पत्र को ग्रहण करने के पश्चात प्रधानमंत्री नरेन्द्र‌ मोदी तथा चौधरी साहब के पौत्र, राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष, जयंत चौधरी 31 मार्च को क्रांतिधरा मेरठ (मोदीपुरम) पधारे।

सन् 2014 व 2019 की भांति 2024 के लोकसभा की चुनावी रैली का शंखनाद अथवा चुनाव अभियान की शुरुआत मोदी जी ने फिर से मेरठ से ही की। जिसका विवरण मीडिया के माध्यम से भारत के लोगों को मिल चुका है। इस पर विस्तृत चर्चा का यहां कोई प्रभोजन नहीं है।

चौधरी चरण सिंह जैसे ज़मीनी और सर्व समाज के हितसाधक राष्ट्रप्रेमी नेता को ‘भारतरत्न’ से अलंकृत किया जाना कृषि प्रधान देश के करोड़ों लोगों की आकांक्षाओं को पूर्ण करने का सद् प्रयास है जिसके लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मुक्तकंठ से प्रशंसा होनी चाहिये। श्री मोदी ने देश व समाज के हित में जो अनेक शुभ निर्णय लिए हैं उनमें एक श्रेष्ठ निर्णय पद्म सम्मान को प्रदान करने का भी है। जिन लोगों ने देश व समाज के प्रति अपनी योग्यता, कौशल व अपनी निष्ठा का समर्पण किया, चुपचाप अपने-अपने कार्यक्षेत्र में सक्रिय रहे, उन लोगों को ढूंढ-ढूंढ कर मोदी जी सामने लाये और उन्हें पद्म सम्मान से नवाजा।

आज लोग, परिवार, बिरादरी, अपने दल व अपने लोगों को हर जगह तरजीह देते हैं। अतीत में पद्म सम्मान पात्रता व योग्यता के आधार पर नहीं दिये गए, भले ही यह बात सभी पर लागू न होती हो किन्तु कुछ लोग ऐसे भी रहे जिन्हें पक्षपात के अन्तर्गत पद्म सम्मान मिले किन्तु श्री मोदी ने इस मानसिकता से ऊपर उठकर केवल पात्रता का ध्यान रखा।

मोदीपुरम आने से पूर्व श्री मोदी ने एक उल्लेखनीय कार्य भारतीय राजनीति के पुरोधा और श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन के नायक लालकृष्ण आडवाणी को ‘भारतरत्न’ से अलंकृत कराने का किया। राष्ट्रपति भवन में आडवाणी जी को अलंकृत करने के बजाय महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू स्वयं उनके निवास पर पहुंचीं और उन्हें ‘भारतरत्न’ के सर्वोच्च सम्मान से अलंकृत किया। सच में यह अद्‌भुत, अविस्मरणीय क्षण था। श्री मोदी के चिन्तन से ही पद्म सम्मानों को सम्मान बढ़ा है और मोदी जी का कद भी बढ़ा है।

आज हमें वे क्षण याद आ गए जब सन् ‌1961 में तत्कालीन राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने प्रयागराज पहुंच कर राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन को ‘भारतरत्न’ से अलंकृत किया था। टंडन जी की बीमारी और वृद्धावस्था को दृष्टिगत रख राजेन्द्र‌ बाबू ने यह निर्णय अपने विवेक से लिया था जबकि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू टंडन जी के राष्ट्रभाषा प्रेम एवं भारतीय संस्कृति के प्रति लगाव के कारण उनसे रुष्ट रहते थे।

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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