मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दो दिन से अस्वस्थ थे। स्वस्थ होते ही वह अपने दोस्त और पूर्व उपमुख्यंत्री सुशील कुमार मोदी से मिलने उनके घर पहुंचे। स वहां उन्होंने सुशील मोदी के परिजनों से बातचीत की। साथ ही दिवंगत भाजपा नेता के तैलचित्र पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किया।
मुख्यमंत्री ने दिवंगत सुशील मोदी के परिजनों से मिल कर उन्हें सहानुभूति देते हुए कहा कि इस दुख की घड़ी में हमलोग आपके साथ हैं। सीएम नीतीश कुमार के साथ मंत्री विजय कुमार चौधरी और सांसद संजय झा माैजूद थे। हालांकि, इस दौरान सीएम नीतीश कुमार ने मीडियो बातचीत नहीं की। बता दें कि सीएम नीतीश कुमार ने आज शिवहर में चुनावी संभा को संबोधित किया। उन्होंने जदयू प्रत्याशी के लिए चुनाव किया। शिवहर से लौटते ही सीएम नीतीश एयरपोर्ट से सीधे दिवंगत सुशील मोदी के आवास पर पहुंचे।
राजकुमार मोदी ने बताया क्या बोले सीएम नीतीश कुमार
लेकिन, पूर्व उपमुख्यमंत्री के भाई राजकुमार मोदी से जब पत्रकारों ने नीतीश कुमार के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारा बहुत ही पुराना संबंध उनके साथ है। हमने अपना एक सच्चा साथी खोया है। इससे पहले राजकुमार मोदी ने कहा कि वह (सुशील मोदी) बहुत ही ज्यादा पढ़े-लिखे और काफी ज्ञानी थे। सभी विषयों पर विस्तृत ज्ञान था उनका। जीएसटी आज जो देश में लागू हुआ उसका मुख्य श्रेय उन्हीं को जाता। शायद वह उसकी पूरी हिस्ट्री लिखते। दूसरे देशों में जीएसटी की हिस्ट्री लिखते। लेकिन प्रभु की यही इच्छा थी। बहुत तेजी से उनका स्वास्थ्य खराब हुआ।डॉक्टर ने बहुत कोशिश की। प्रधानमंत्री खुद उनके ट्रीटमेंट को मॉनिटर कर रहे थे। लेकिन, प्रभु की इच्छा के आगे मनुष्य बेबस और लाचार है।

कमान संभाली तो सरकार बदलने को मजबूर हुए नीतीश
लालू-नीतीशके रिश्तों को ठीक से समझना हो तो भी बहुत पीछे जाने की जरूरत नहीं। 2005 से नीतीश कुमार के साथ ही सुशील मोदी साये की तरह थे। जब प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी को भाजपा ने आगे किया था, तब नीतीश कुमार ने भाजपा से दूरी बना ली। येन-केन-प्रकारेण यह दूरी बनी तो 2014 के लोकसभा के बाद 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी कायम रही। भाजपा को इस चुनाव में भारी झटका लगा।
कोई तारणहार नहीं नजर आ रहा था। नीतीश कुमार वापस लालू प्रसाद यादव के साथ हो लिए थे। पहली बार तेजस्वी यादव को डिप्टी सीएम की कुर्सी मिली थी। सब ठीक ही चल रहा था। लेकिन, फिर सुशील कुमार मोदी ने मिट्टी-मॉल घोटाले की फाइल ऐसी खोली कि नीतीश कुमार को अपने फैसले पर शक होने लगा। लगभग 50 दिनों तक सुशील मोदी ने ऐसा अभियान चलाया कि नीतीश कुमार का शक यकीन में बदल गया और 2015 में लिए महागठबंधन के लिए जनादेश को ठुकरा कर वह 2017 में वापस भाजपा के साथ आ गए।
सुशील भेजे गए दिल्ली तो नीतीश भी हो गए भाजपा से दूर
फिर सब ठीक चल रहा था और 2020 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ नीतीश कुमार को जनादेश मिला। इस जनादेश के बाद भाजपा ने अप्रत्याशित रूप से नीतीश कुमार को झटका दिया। भाजपा ने सुशील कुमार मोदी को उनका डिप्टी सीएम नहीं बनाया। उन्हें राज्यसभा भेज दिया। तभी से यह माना जा रहा था कि समन्वय का संकट होगा। यही हुआ भी, जिसके कारण नीतीश कुमार ने एक बार फिर लालू प्रसाद यादव का रुख किया।
वह भाजपा के साथ पुराने प्रारूप का संबंध कायम नहीं रख सके। महागठबंधन की सरकार बीच में ही बनी और फिर जब लोकसभा चुनाव की आहट शुरू हुई तो अपने जन्मदिन के आसपास सुशील कुमार मोदी ने नीतीश को वापस लाने का प्रयास अपने स्तर से शुरू किया। जनवरी 2024 में सुशील कुमार मोदी के जन्मदिन (5 जनवरी) के पोस्टरों में उन्हें ‘बिहार भाजपा का संकटमोचक’ बताया गया और 28 जनवरी को नीतीश कुमार फिर भाजपा के साथ आ गए। बस, सुशील कुमार मोदी की वापसी नहीं हुई। और, अब तो वह वहां चले गए- जहां से कोई वापस ही नहीं आता।