विदेशी फंडिंग का नहीं, व्यक्ति की आज़ादी का मामला है!


15 मई, 2024 को दिल्ली से दो खास खबरें आईं। पहली यह कि सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस सन्दीप मेहता की पीठ ने न्यूजक्लिक के प्रधान संपादक प्रबीर पुरकायस्थ को यह कह कर बरी कर दिया कि उनकी गिरफ्तारी में कानून की अवज्ञा की गई। 23 अक्टूबर, 2023 को गिरफ्तारी के समय रिमांड अर्जी की प्रति उन्हें नहीं दी गई। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार पुरकायस्थ की गिरफ्तारी संविधान के अनुच्छेद 20,21,22 के अधीन मिले जीवन के अधिकार व व्यक्तिगत स्वतंत्रता के व्यक्ति के सबसे पवित्र अधिकार के विरुद्ध है। कोर्ट ने कहा-गिरफ्तारी कानून विरोधी है। पुरकायस्थ को फौरन रिहा किया जाए। और शाम होते-होते प्रबीर पुरकायस्थ रिहा भी हो गए।

समाचार पोर्टल न्यूज़क्लिक, कथित विदेशी निवेश मानदंडों के उल्लंघन और चीन लिंक के लिए जांच के दायरे में है। इसके संस्थापक, प्रबीर पुरकायस्थ और एचआर प्रमुख अमित चक्रवतर्ती को दिल्ली पुलिस ने आतंकवाद विरोधी कानून, गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया था। ये गिरफ्तारियां न्यूज़क्लिक और उनके पत्रकारों पर छापे के एक दिन बाद हुईं। न्यूयॉर्क टाइम्स की जांच में आरोप लगाया गया कि समाचार पोर्टल को चीनी प्रचार को बढ़ावा देने वाले नेटवर्क से धन प्राप्त हुआ था.

न्यूज़क्लिक और संस्थापक के खिलाफ मामला 17 अगस्त, 2023 को दर्ज किया गया था और इसके अधिकारियों के खिलाफ यूएपीए लगाया गया। मीडिया संगठन पर आतंकवादी गतिविधियों, आतंकी फंडिंग और आपराधिक साजिश का आरोप लगाया गया है। इस पर दो समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने का भी आरोप है। यह मामला 38 करोड़ रुपये पर आधारित है जो समाचार पोर्टल को कथित तौर पर विदेशी फंडिंग के रूप में प्राप्त हुआ था.। प्रवर्तन निदेशालय के सूत्रों का कहना है कि चीनी संस्थाओं ने चीनी समर्थक सामग्री का प्रचार करने के लिए न्यूज़क्लिक में धन का निवेश किया।

सूत्रों का कहना है कि न्यूज़क्लिक को कथित तौर पर अप्रैल 2018 में यूएस-आधारित मेसर्स वर्ल्डवाइड मीडिया होल्डिंग्स एलएलसी से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के रूप में 9.6 करोड़ रुपये प्राप्त हुए, जिसने 11,510 शेयर के बढ़े हुए प्रीमियम पर इसके शेयर खरीदे। कंपनी की स्थापना 2017 में चीन निवासी नेविल रॉय सिंघम के सहयोगी जेसन पफ़ेचर द्वारा की गई थी, जो कथित तौर पर चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के संपर्क रखने वाले व्यक्ति हैं। सूत्रों का कहना है कि उन्होंने कथित तौर पर ‘वामपंथी विचारधारा’ को बढ़ावा देने के लिए न्यूज़क्लिक में पैसा लगाया।

न्यूज़क्लिक को कथित तौर पर 2018 और 2022 के बीच दो अमेरिकी-आधारित संस्थाओं से 28 करोड़ रुपये का निर्यात प्रेषण भी प्राप्त हुआ। उनका कहना है कि 38 करोड़ रुपये के विदेशी फंड के अपारदर्शी स्रोत का पता नेविल रॉय सिंघम से लगाया गया है।

विदेशी फंड के अलावा इसका अंतिम उपयोग भी जांच एजेंसियों की जांच के दायरे में है। एजेंसियों के मुताबिक अब तक की जांच से पता चला है कि न्यूज़क्लिक ने कथित तौर पर भीमा कोरेगांव मामले के आरोपी कार्यकर्ता को वेतन के रूप में 21 लाख रुपये का भुगतान किया था। मानवाधिकार कार्यकर्ता के परिवार के सदस्यों को भी कथित तौर पर वेतन के रूप में 24 लाख रुपये मिले।

न्यूज़क्लिक ने कथित तौर पर पत्रकार को वेतन के रूप में 40 लाख रुपये का भुगतान किया, जो 2018 से संगठन के सलाहकार हैं। एक अन्य पत्रकार, को 23 लाख रुपये वेतन मिला। जांच से यह भी पता चला है कि संस्थापक ने कथित तौर पर अमेरिका स्थित एक रक्षा कंपनी के निवेश से एक कंपनी बनाई थी। कंपनी के निवेश और मामलों को भी जांच के दायरे में लाया गया था।

राजधानी से आई दूसरी खबर भी मीडिया और पत्रकार जगत से संबंधित है। 15 मई, 2024 को दिल्ली के डॉ. अम्बेडकर इंटरनेशनल सेण्टर के नालन्दा हॉल में वरिष्ठ राष्ट्रीय पत्रकार अशोक श्रीवास्तव की पुस्तक ‘मोदी वर्सेस खान मार्केट’ का विमोचन हुआ। लोकार्पण के समय प्रख्यात पत्रकार राम बहादुर राय, राज्यसभा सदस्य सुधांशु त्रिवेदी, कल्कि धाम के पीठाधेश्वर प्रमोद‌ कृष्णनम व अनेक बुद्धिजीवी मौजूद थे।

अशोक श्रीवास्तव की पुस्तक न सिर्फ सामयिक है, अपितु प्रामाणिक भी है। गल्प साहित्य नहीं है। कथित सेक्यूलरवादी और कथित प्रगतिशील कहलाने वाले एजेंडावादी पत्रकारों का संगठित समूह देश की तमाम राष्ट्रवादी एवं जनहितकारी शक्तियों के विरुद्ध गोलबन्द होकर मिथ्या अवधारणा फैलाने में लगा है। श्री श्रीवास्तव ने इन सभी के नामों को तथ्यो, साक्ष्यों व घटनाओं के स्पष्ट उल्लेखों से सिद्ध किया है।

यह सर्विदित है कि न केवल जार्ज सोरोस जैसे भारत विरोधी बल्कि और भी विदेशी भारत की राष्ट्रवादी ताकतों पर लगातार प्रहार करने में जुटे हैं। एजेंडाधारी वित्तपोषित पत्रकार इस कार्य में सबसे आगे हैं।

अशोक श्रीवास्तव की पुस्तक इस पाखंड-प्रपंच की पोल खोलती है तो एजेंडाधारी पत्रकार अपनी हरकतों से खुद की पोल पट्टी खोल देते हैं। करोड़ों रुपये की फीस लेने वाले वकील इनकी अदालतो में पैरोकारी करते हैं। पत्रकारों की वामपंथी संस्थायें अदालतों को अपने-अपने तरीको से प्रभावित करने में लगी हैं। प्रबीर पुरकायस्थ की गिरफ्तारी के समय प्रधान न्यायधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ को इन्होंने पत्र लिखकर न्याय की गुहार लगाई थी।

आज जो संविधान संविधान का शोर मचा रहे हैं वे यह क्यूं नहीं बताते कि 1975 में इंदिरा गांधी इमरजेंसी थोप कर तानाशाह बन गई थीं, सांसदों, जन प्रतिनिधियों की सलाह लिये बिना चुपचाप संविधान में सेक्यूलर तथा सोशलिज्म शब्द बढ़ा दिये थे। आज न्यायपालिका इन्हीं दो शब्दों को केन्द्र में रख कर फैसले देती है। सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में भीमा कोरेगांव कांड के अभियुक्त गौतम नवलखा को 14 मई, 2024 को जमानत दे दी। 8 मार्च, 2024 यो दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रवक्ता जी. एन. साईबाबा को रिहा करने के साथ ही सरकार को फटकार भी लगा डाली। 8 अप्रैल, 2024 को आदेश आया कि चुनाव के दौरान किसी भी यूट्‌यूबर को गिरफ्तार न किया जाए। 22 जुलाई, 2022 को आल्टन्यूज के यूट्‌यूबर मौहम्मद जुबेर को फटाक से जमानत मिली।

अदालतों पर इस गुलगपाड़े का प्रभाव पड़ा या न्यायालयों ने न्याय के तराजू में तथ्य रखकर फैसले किए‌, कानून के जानकारों को व्यापक राष्ट्र‌हित में इस पर चिन्तन-मनन करना चाहिए।

गोविन्द वर्मा

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