जम्मू कश्मीर में 70 घंटों के भीतर एक के बाद एक हमलों से ज्ञात होता है कि घाटी में आतंकवाद के पैर मज़बूती से जमे हुए हैं। 9 जून को रियासी में 9 तीर्थ यात्रियों की हत्या करने के बाद आतंकियों ने कठुआ, डोडा व राजौरी में ताबड़तोड़ हमले किये।
राजौरी के नौशेरा में सेना के कैप्टन प्रांजल की शहादत राष्ट्र की बड़ी क्षति है, यद्यपि मुठभेड़ में दो आतंकी ढेर किये गए।
जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद अभी भी बड़ा संकट व समस्या है तो दूसरी परेशानी है अब्दुल्ला व मुफ्ती परिवार। बेटे उमर अब्दुल्ला के आतंकी रशीद के हाथों दो लाख वोटों से पराजित होने के बाद भी फारूक अब्दुल्ला कह रहे हैं कि जब तक पाकिस्तान से बात नहीं होगी, कश्मीर में ऐसे आतंकी हमले रुकने वाले नहीं। दूसरी ओर कांग्रेस प्रवक्ता टी.वी. पर शुरू हो गए हैं और आतंकी हमलों के दोषी पाकिस्तान की निन्दा करने के बजाय गृहमंत्री अमित शाह की निन्दा करने में जुट पड़े हैं। इन दोतरफा हमलों से निपटना आज की ज्ज्वलन्त समस्या है। पकिस्तान तो वही करेगा, जो दशकों से करता आया है। निर्णायक फैसला आने का समय हो गया है।
गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’