जाति पूछने का विशेषाधिकार


राहुल गांधी का कहना है कि जिस तरह महाभारत वाले अर्जुन को सिर्फ़ मच्छी (मछली नहीं।) की आँख दिखाई दे रही थी, वैसे ही मुझे ‘मच्छी’ की आँख में जातीय जनगणना दिख रही है। जाति गणना का प्रस्ताव यहीं से पास कराऊंगा।

पूरे देश ने संसद टी.वी. के माध्यम से देखा कि अनुराग ठाकुर ने राहुल का नाम लिए बिना कहा कि जिन लोगों की जाति का पता नहीं, वे जाति गणना कराने की बात करते हैं। इस पर राहुल आग बबूला हो गए और बोले- मुझे गाली दी गई है, मेरा अपमान किया गया है। और तो और आखिलेश यादव भी आपे से बाहर होकर बोले कि जाति क्यूं पूछी?

वरिष्ठ पत्रकार और यूट्यूबर प्रदीप सिंह ने ठीक ही टिप्पणी की कि दो युवराज किसी से भी उसकी जातिपूछ कर उसका मजाक उड़ा सकते हैं लेकिन इन्हें जात पूछना गाली व अपमान लगता है। टाइम्स नॉव नवभारत चैनल के सुशान्त सिन्हा ने वीडियो क्लिप दिखाये जिसमें राहुल एक पत्रकार से उसके मालिक का नाम पूछते हुए कहते हैं क्या वह ओ.बी.सी. है? दलित है? आदिवासी है? राहुल का पत्रकार से जाति पूछने का लहज़ा एक सड़कछाप लफंगे जैसा था। इस वीडियो में राहुल यह कहते सुने जा रहे हैं- यार! मारो मत, मारो मता, यानी राहुल के जाति पूछते ही उनके चमचों ने पत्रकार को पीटा भी था। इस वीडियो को करोड़ों लोग देख चुके हैं।

सुशान्त सिन्हा ने एक और वीडियो दिखाया। इसमें अखिलेश यादव प्रेस कांफ्रेंस में एक पत्रकार से नाम पूछते हैं, जाति बताने को कहते हैं। जब वह खुद को मिश्रा (ब्राह्मण) बताता है तो अखिलेश उस का उपहास उड़ाते हुए कहते हैं- ‘अच्छा मिश्रा है, मिश्रा!’ वीडियो में अखिलेश की मुखमुद्रा और उनकी व्यंग्यात्मक हंसी खुद बताती है कि वे किस स्तर के व्यक्ति हैं। इस वीडियो को भी करोड़ों लोगों ने देखा है। ये वे ही अखिलेश हैं जिनके पिताश्री मुलायम सिंह यादव डॉ. राममनोहर लोहिया और जेपी को अपना पथप्रदर्शक मानते थे। अखिलेश ने क्या भुला दिया कि डॉक्टर लोहिया ने जाति तोड़ो आन्दोलन चला कर जातिवाद की जड़ों पर प्रहार किया था?

सुशान्त सिन्हा ने एक और पुराना वीडियो दिखाया जिसमे राहुल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जाति पर सवाल उठा रहे हैं। वे कहते दीख पड़ रहे हैं कि मोदी ओबीसी नहीं हैं, उनकी जाति ‘घांची’ को तो बाद में ओबीसी सूचि में लाया गया। यानी आप चाहें किसी पत्रकार से या प्रधानमंत्री से उसकी जाति पूछ लें, आप से सवाल हो तो जाति पूछना आपको गाली लगता है। कोई भी राहुल से पूछ सकता है कि दूसरों की जाति पूछ कर आप को गाली देने का विशेषाधिकार किसने दिया ?

सभी को पता है कि राहुल के दादा फ़रेदून जहांगीर थे। राहुल के पड़बाबा का नाम जहांगीर था। उनके एक दादा का नाम दोराब था। तेहमिना करकश तथा आलू दस्तूर नाम की दो दादियां थीं। उनके दादा फ़रेदून जहांगीर की परवरिश उनकी मौसी शीरीं कमिसारीट ने की, जो इलाहाबाद में रहती थीं। वे अविवाहित थीं। यह एक पारसी परिवार था (हिन्दू नहीं) जो मूल रूप से गुजरात के भरूच का रहने वाला था लेकिन राहुल के परदादा भरूच से मुम्बई चले आए और खेतबाड़ी मौहल्ले के नौरोजी नाटकवाला भवन में रहने लगे। वह आज भी पारसियों की बस्ती है किन्तु यह भी सत्य है कि उनके पिता राजीव कभी अपनी ननिहाल नहीं गए। इलाहाबाद के पारसी कब्रिस्तान में फीरोज़ जहांगीर की कब्र है लेकिन राहुल अपने दादा के जन्मदिन- 12 सितम्बर और पुण्य तिथि 8 सितम्बर को श्रद्धासुमन अर्पित करने एक बार भी प्रयागराज के पारसी कब्रिस्तान पर नहीं पहुंचे।

यह भी सर्वविदित है कि जवाहरलाल नेहरु नहीं चाहते थे कि इंदिरा प्रियदर्शिनी का विवाह फीरोज जहांगीर के साथ हो किन्तु प्रियदर्शनी की माता कमला नेहरु तथा मोहनदास कर्मचन्द गांधी ने फीरोज व प्रियदर्शिनी का विवाह कराना चाहते थे। नेहरु जी की इच्छा के विरुद्ध यह विवाह हुआ। दुर्भाग्य से दोनों का वैवाहिक जीवन सफल नहीं रहा और इंदिरा अपने बेटों- राजीव व संजय के साथ नेहरु जी के पास रहने लगीं। फीरोज जहांगीर, अलग बंगले में रहने लगे, जो उनके सांसद बनने पर उन्हें अलॉट हुआ था। इस बंगले में अब प्रेस क्लब ऑफ इंडिया का दफ्तर है। फीरोज जहांगीर के नाम के आगे ‘गांधी’ सरनेम लिखने की अनेक बातें उड़ीं, जिसमें यह भी बात थी कि महात्मा गांधी ने उन्हें अपना बेटा मान कर अपना गांधी सरनेम लिखने की इजाजत दी थी। असलियत यह बताई जाती है कि पारसियों में ‘घंडी’ नाम से गोत्र है। गांधी नाम अधिक प्रचलित होने से ‘घडी’ गांधी बन गया और गुजराती बनियों का सरनेम गांधी इंदिरा गांधी, फीरोज गांधी, राजीव गांधी, संजय गांधी, सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी से जुड़ गया।

भारत में पितृतात्मक वंश सत्ता यानी पिता की जाति के अनुरूप वंश परम्परा सदियों से प्रचलित है। राहुल यदि पितृसत्ता परम्परा को अस्वीकार करते हैं तो उन्हें अपनी माता, जिनका पैदाइशी नाम एंटोनियो माइनो था, की वंशावली से जोड़ना पड़े‌गा, जो मूलरूप से कैथोलिक ईसाई हैं। एंटोनियो माइनो का जन्म 9 दिसंबर, 1946 को इटली के विसेंजा शहर के समीप एक छोटे से गांव में हुआ था। उन्होंने ओरबासानो नामक शहर में 13 वर्ष की आयु में प्राइमरी शिक्षा प्राप्त की। एंटोनियो (सोनिया गांधी) मूलतः इटली की स्थानीय भाषा सिम्ब्रियन ही बोल सकती थीं। वे हाईस्कूल तक की शिक्षा हासिल नहीं कर पाईं। उनकी इच्छा हवाई सेवा में फ्लाइट असिस्टेंट बनने की थी अत: 18 वर्ष की आयु में इंग्लैंड के कैम्ब्रिज शहर के एक स्कूल में इंग्लिश पढ़ने को पहुंचीं। पढ़ाई के दौरान एंटोनियो माइनो वर्सिटी रेस्तराँ में अंशकालिक वेट्रेस (खाद्य पदार्थ परोसने का) का काम करती थीं। राजीव कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के ट्रिनिटी कॉलेज में इंजीनियर की शिक्षा ले रहे थे और अक्सर वर्सिटी रेस्तराँ आते रहते थे। वहीं उनकी मुलाकात एंटोनियो माइनो से हुई जो घनिष्टता में तब्दील हो गई।

सन् 1968 में राजीव से विवाह के बाद वे सोनिया गांधी बन गईं। यानी ईसाई होने के बाद भी उनका सरनेम घंडी के बजाय गांधी लिखा जाने लगा।

राहुल तानाशाही! तानाशाही!, हिटलरशाही, हिटलरशाही के नारे गला फाड़ कर लगाते हैं लेकिन यह नहीं बताते कि इट‌लीवासी उनका नाना स्टेफानो पहले राजमिस्त्री का काम करता था और जर्मनी तानाशाह‌ एडोल्फ हिटलर का कट्टर समर्थक था। वह इटली के तानाशाह बेनिटो मुसोलिनी से बहुत प्रभावित था। स्टेफानो ने फासिस्ट मुसोलिनी के प्रति अपनी आस्था जताने में कोई शर्मिन्दगी महसूस नहीं की। स्टेफानो ने अपने ड्राइंगरूम को फासिस्ट तानाशाह के वचनों को चमड़े पर उत्कीर्ण कर के सजा रखा था। सन् 1998 में स्टेफानो ने ‘आउटलुक’ पत्रिका को दिए इंटरव्यू में साफतौर पर स्वीकार किया कि वह मुसोलिनी का कट्टर समर्थक है जिसने हिटलर के साथ मिल कर हजारों यहूदियों की हत्या की थी। स्टेफानो ने यहूदियों की जबरन नसबन्दी की योजना का भी खुला समर्थन किया था। हिटलर और मुसोलिनी जैसे दमनकारी क्रूर तानाशाहों का कट्टर समर्थक, सोनिया गांधी का पिता और राहुल का नाना स्टेफानो हिटलर के प्रति वफादारी प्रदर्शित करने को द्वित्य विश्वयुद्ध में हिटलर के सेनापति वेहरमाच के साथ रूसी सेना से लड़ा था किन्तु पकड़ा गया। रूस ने उसे युद्धबन्दी की तरह जेलों में रखा। जब सोनिया गांधी एंटीनियो माइनो थीं, तब वे अपने पिता से रूस की व्लादिमीर तथा सुजदाल जेल में मिलने गई थीं।

राहुल जब अपनी जाकेट पर जनेऊ पहनते हैं या नमाज पढ़ने की मुद्रा में पंजों के बल बैठ कर पूजा करते हैं, तो खुद को ब्राह्मण कहते हैं। पितृ‌पक्ष के अनुसार तो वे पारसी हुए। गांधी सरनेम तो उधार का है जो गुजराती वैश्यों का प्रतीक है। माँ पक्ष की परम्परा को कैसे मान सकते हैं, भले ही वे रोमन कैथोलिक क्रिश्चियन हों। भारत में तो पितृ‌सत्ता चलती है।
देश जानता है, खुली आं‌खों से देखता है कि दूसरों की जाति पूछ कर अपमान करने वाला एजेंडा एक खतरनाक साजिश है। जिस देश को वे जोड़ने का दावा करते हैं, वह देश तोड़ने का षड्यंत्र है। 1947 में जो हुआ, अब उसे दोहराया नहीं जाएगा।

गोविन्द वर्मा

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