हिंडनबर्ग रिपोर्ट को लेकर कांग्रेस ने भी सेबी और भाजपा पर हमला बोला है। कांग्रेस ने सेबी प्रमुख माधबी बुच से इस्तीफा मांगा है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट से मामले की जांच सीबीआई या एसआईटी से कराने की मांग की है।
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि अदाणी मामले में सेबी समझौता कर सकती है। इसलिए मोदानी महा घोटाले की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) का गठन किया जाए। उन्होंने कहा कि मामले में सेबी ने काफी सक्रियता दिखाई। उसने हिंडनबर्ग को 100 सम्मन, 1100 पत्र और ईमेल जारी किए और 12 हजार पृष्ठों वाले 300 दस्तावेजों की जांच की है। लेकिन मुख्य बात है कि कार्रवाई नहीं की गई।
जयराम रमेश ने कहा कि 14 फरवरी, 2023 को मैंने सेबी अध्यक्ष को पत्र लिखा था। मैनें देश के करोड़ों नागरिकों की ओर से भारतीय वित्तीय बाजार के प्रबंधक की भूमिका निभाने के लिए कहा था, लेकिन मुझे कोई जवाब नहीं मिला। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने सेबी को दो महीने में अदाणी समूह के खिलाफ स्टॉक हेरफेर और अकाउंटिंग धोखाधड़ी के आरोपों की जांच पूरी करने के निर्देश दिए थे। इसके 18 महीने बाद सेबी ने जांच तो की, लेकिन यह नहीं बताया कि अदाणी ने न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता से संबंधित नियम 19ए का उल्लंघन किया है या नहीं।
उन्होंने दावा किया कि सेबी की अपनी 24 जांच में से दो को बंद करने में असमर्थ रही। इसलिए जांच के परिणाम सामने आने में एक साल से ज्यादा का समय लग गया। रमेश ने आरोप लगाया कि इस देरी की आड़ में प्रधानमंत्री अपने दोस्त अदाणी की अवैध गतिविधियों को बढ़ावा देते रहे और आम चुनाव में भाग ले पाए। उन्होंने यह भी कहा कि अदाणी समूह को क्लीन चिट मिलने के बाद भी सेबी ने समूह की कई कंपनियों को कारण बताओ नोटिस जारी किया है।
उन्होंने कहा कि हाल ही में जारी हुई हिंडनबर्ग रिपोर्ट अदाणी महा घोटाले की जांच में सेबी की ईमानदारी और आचरण को लेकर सवाल उठ रहे हैं। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को जांच को सीबीआई या एसआईटी को स्थानांतरित करना चाहिए। साथ ही सेबी अध्यक्ष को इस्तीफा देना चाहिए।
वहीं कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने कहा कि सेबी, पीएम और निर्मला सीतारमण हिंडनबर्ग द्वारा उठाए गए तथ्यात्मक और बिंदुवार मुद्दों का जवाब कब देंगे। हम तारीख का इंतजार कर रहे हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या बुच ने इस बात का जवाब दिया कि सेबी चेयरपर्सन बनने से पहले भी उन्होंने अपनी ईमेल आईडी से पैसे के लिए कोई मेल भेजा था? क्या उन्होंने ऑफ-शोर कंपनियों में अपने निवेश का खुलासा किया था?
उन्होंने कहा कि संदेह है कि बुच की कंपनियों का गौतम अदाणी के भाई विनोद अदाणी की विदेशी कंपनियों में निवेश था। अगर पीएम के पास ऐसी जानकारी थी, तो उन्होंने माधबी बुच को सेबी अध्यक्ष क्यों बनाया? अगर जानकारी नहीं थी, तो वे सत्ता में रहकर क्या कर रहे हैं? पीएम को इस्तीफा दे देना चाहिए।
क्या है मामला?
गौरतलब है, अमेरिका की कंपनी हिंडनबर्ग ने 10 अगस्त को एक रिपोर्ट जारी कर दावा किया था कि सेबी प्रमुख माधबी पुरी बुच और उनके पति ने मॉरीशस की उसी ऑफशोर कंपनी में निवेश किया है, जिसके माध्यम से भारत में अदाणी ग्रुप की कंपनियों में निवेश करवाकर अदाणी ने लाभ उठाया था। उसने कहा कि इसे व्यापार का गलत तरीका माना जाता है। वहीं भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी), उसकी प्रमुख बुच तथा उनके पति ने अदाणी की कंपनियों के प्रति नरमी बरतने के आरोपों को सिरे से नकार दिया है। बुच ने दावों को निराधार बताया और कहा कि इसमें कुछ भी सच्चाई नहीं है।