गत वर्ष हुई गलवान घाटी हिंसा के बाद से भारत और चीन के रिश्ते बेहद तल्ख हैं। वहीं सीमा विवाद को लेकर कई दौर की वार्ताओं के बाद भी मामला शांत होता नहीं दिख रहा। वहीं मोदी सरकार भी वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सुरक्षा पंक्ति मजबूत बनाने के लिए कोई कसर बाकी नहीं रख रही है। जिसके चलते भारत अब ड्रोनों, सेंसरों, टोही विमानों और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध के औजारों के जरिए चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) की हरकतों पर पहले से ज्यादा पैनी नजर रखने की तैयारी में है। इस कदम के पीछे का बड़ा मकसद ड्रैगन की घुसपैठ की कोशिश को रोकना है।
रक्षा मंत्रालय के एक सूत्र ने जानकारी दी कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान के साथ 778 किमी लंबी नियंत्रण रेखा की तरह लगातार पैनी नजर नहीं रखी जा सकती। इसलिए वास्तविक नियंत्रण रेखा पर रियल टाइम जानकारी के लिए मौजूदा निगरानी प्रणाली को और दुरुस्त किया जाएगा।
सूत्र ने जानकारी दी कि अधिग्रहण और इंडक्शन की योजना हाई एल्टीट्यूड वाले क्षेत्रों के लिए मिनी ड्रोन और अल्ट्रा लार्ज रेंज सर्विलांस कैमरों से लेकर सुदूर पड़ोसी विमान प्रणालियों के लिए मीडियम एल्टीट्यूड लॉन्ग एंड्योरेंस और हाई अल्टीट्यूड लॉन्ग एंड्योरेंस तक है।
इसके अलावा इजराइल से तीन से चार हेरॉन यूएवी को लीज पर लेने की योजना बन रही है। वहीं वायुसेना के लिए हेरॉप कमिकेज अटैक ड्रोन भी खरीदे जाने हैं। बता दें कि भारतीय सेना ने पिछले महीने एक भारतीय कंपनी के साथ 140 करोड़ रुपये की डील पर हस्ताक्षर किए हैं।
इस डील के तहत एडवांस वर्जन के स्विच ड्रोन खरीदे जाएंगे। इस तरह के ड्रोन के सेना में शामिल होने से रणनीतिक स्तर पर हमारी निगरानी प्रणाली में बड़ा बदलाव आएगा। वास्तविक नियंत्रण रेखा पर बटालियन कमांडरों और सैन्य टुकड़ियों को पल-पल की साफ तस्वीरें मिलती रहेंगी। इधर डीआरडीओ ने बॉर्डर ऑब्जर्वेशन एंड सर्विलांस सिस्टम को लगभग पूरा कर लिया है। इसमें कई सेंसर लगे हुए हैं।