हिमाचल प्रदेश में दलबदल के कारण अयोग्य घोषित पूर्व विधायकों की पेंशन बंद करने की तैयारी है। पेंशन के अधिकार से वंचित होने पर पूर्व विधायकों से पिछली रकम की भी वसूली होगी। दलबदल को हतोत्साहित करने के लिए मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने मंगलवार को विधानसभा में संशोधन विधेयक पेश किया। इस विधेयक पर सदन में बुधवार को चर्चा होगी। विधेयक पारित हुआ तो राज्यपाल से मंजूरी के बाद यह कानून का रूप ले लेगा।
मुख्यमंत्री ने भोजनावकाश के बाद सदन की कार्यवाही के दौरान विधानसभा सदस्यों के भत्ते और पेंशन अधिनियम 1971 में संशोधन का प्रस्ताव किया। इसके लिए विधानसभा सदस्यों के भत्ते और पेंशन विधेयक को सदन के पटल पर रखा। इस विधेयक की धारा 2 में दो 2ए जोड़कर 6बी में संशोधन का प्रस्ताव पेश किया। इस धारा में व्यवस्था की गई है कि किसी बात के प्रतिकूल होते हुए भी कोई व्यक्ति अधिनियम के अंतर्गत पेंशन का हकदार नहीं होगा, यदि उसे संविधान की दसवीं अनुसूची के अधीन किसी भी समय अयोग्य घोषित किया गया है। यदि कोई व्यक्ति इस उपधारा के अधीन पेंशन के अधिकार से वंचित हो जाता है तो उसकी ओर से पहले से ली गई पेंशन ऐसी रीति से वसूली जाएगी, जैसी विहित की जाए।
विधेयक में ये बताए कारण
विधेयक में संशोधन के उद्देश्य और कारण स्पष्ट करते हुए लिखा कि विधानसभा सदस्यों के भत्ते और पेंशन प्रदान करने के दृष्टिगत अधिनियमित किया गया था। वर्तमान में भारत के संविधान की दसवीं अनुसूची के अधीन विधायी सदस्यों के दलबदल को हतोत्साहित करने के लिए अधिनियम में कोई उपबंध नहीं है। इसलिए सांविधानिक उद्देश्य के लिए राज्य के लोगों की ओर से दिए जनादेश की रक्षा और लोकतांत्रिक मूल्यों के संरक्षण के लिए संशोधन करना आवश्यक हो गया है।
सियासी संकट से उबरने के बाद सरकार का कड़ा फैसला
सियासी संकट से उबरने के बाद हिमाचल सरकार ने इस तरह का कानून बनाने का एक कड़ा फैसला लिया है। विधानसभा अध्यक्ष ने छह कांग्रेस विधायकों सुधीर शर्मा, राजेंद्र राणा, देवेंद्र कुमार भुट्टो, चैतन्य शर्मा, रवि ठाकुर और इंद्रदत्त लखनपाल को प्रलोभन में आकर दल बदलने के आरोप में अयोग्य घोषित कर दिया था। सुधीर और लखनपाल तो दोबारा उपचुनाव लड़कर भाजपा से विधायक बन गए, लेकिन राणा, भुट्टो, चैतन्य और रवि ठाकुर नहीं जीत पाए, जो अयोग्य घोषित पूर्व विधायकों की श्रेणी में हैं।
देश में ऐसा पहला कानून होगा
विपक्ष के विरोध के बावजूद इसमें संशोधन होता है तो यह राज्यपाल की मंजूरी के बाद ही कानून का रूप ले सकेगा। अयोग्य घोषित विधायकों की पेंशन बंद करने का यह देश में ऐसा पहला कानून होगा।अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करें