एनआईए के विशेष न्यायधीश विवेकानंद शरण त्रिपाठी ने मुजफ्फरनगर के रतनपुरी (इंचौली) थाना क्षेत्र के ग्राम फुलत में आलीशान मदरसा संचालित करने वाले मौलाना कलीम सिद्दीकी व 11 अन्य लोगों को धर्मांतरण विरोधी कानून के अन्तर्गत आजीवन कारावास की सजा सुनाई। 4 अन्य दोषियों को 10-10 वर्ष की कैद व 10 हजार से एक लाख रुपये तक का जुर्माना भी लगाया। आरोपी इदरीस कुरैशी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट से स्टे ले लिया था इसलिए उसके मामले पर विचार नहीं हुआ और उसे सजा नहीं मिल सकी। अदालत के आदेश से अवैध धर्मांतरण के पीड़ित आदित्य गुप्ता व मोहित चौधरी को दोषी 2-2 लाख रुपये हर्जाना अदा करेंगे। दो अन्य पीड़ितों- नितिन पन्त व परेश लीलाधर हारोड़े को भी मुआवजा देने का विधिक सेवा प्राधिकरण को आदेश दिया गया।
आरोपियों ने हिन्दू पीड़ितों को लोभ लालच व कई प्रकार के प्रलोभन देकर मुसलमान बनाया था। एटीएस ने 20 जून, 2021 को कलीम सिद्दीकी, मोहम्मद उमर गौतम, सलाउद्दीन जैनुद्दीन शेख, प्रकाश रामेश्वर कावड़े उर्फ आदम, धीरज गोविंद राव जगताप, सरफराज अली जाफरी, काजी जहांगीर, अब्दुल्ला उमर, मोहम्मद सलीम, भुप्रिय बन्दो उर्फ अर्सलान मुस्तफा, कौसर आलम, फराज वाबुल्लाशाह, इरफान शेख, राहुल भोला, मन्नूयादव, कुणाल अशोक के विरुद्ध चार्जशीट दाखिल की थी। कलीम सिद्दीकी गैग का मुखिया था। वह एमबीबीएस था लेकिन डॉक्टरी की प्रेक्टिस छोड़कर ग्राम फुलत में जामिया इमाम शाह वलीउल्लाह इस्लामिया के नाम से आलीशान मदरसा बना लिया। उसके ट्रस्ट को अरब देशों से लाखों रुपया मिलता था जिसका प्रयोग वह धर्मांतरण में करता था। कलीम हिन्दू धर्म की जानकारियां लेने को आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत से भी मिला था और उन्हें झांसा दिया कि वह इस्लाम छोड़कर सनातन धर्म अपनाना चाहता है। उसने जिन हिन्दुओं को मुसलमान बनाया था उनको आगे कर उनके जरिये धर्मांतरण कराता था।
पूरे भारत में कलीम और उस जैसे सनातन विरोधी तत्व धर्मांतरण का जिहाद चलाये हुए है। इन पर काबू पाना एक कठिन चुनौती है यदि उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ जैसा चौकन्ना मुख्यमंत्री न होता तो कलीम सिद्दीकी जैसे गिरोह का पता लगाना और उसे सजा दिलवापाना कठिन था क्यूंकि कथित धर्म निरपेक्ष व वामपंथी नेता और भ्रष्ट और कुछ भ्रष्ट न्यायधीश ऐसे लोगों को मदद को बाहें पसारे खड़े रहते है। कलीम सिद्दीकी व उसका गैंग निश्चित रूप से इस फैसले को बड़ी अदालत में चुनौती देगा। वहां क्या होगा, अभी कौन बता सकता है ?
गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’