हरियाणा में जाट, पहलवान, जवान (अग्निवीर) का नैरेटिव, झूठ का पुलिन्दा, गालियों का पिटारा, सभी चुनावी हथकंडे फेल हो गये। होने ही थे। ढिंढोरची मीडिया का एक्जिट पोल का ढोल भी फूट गया। कल तक सुप्रिया श्रीनेत कांग्रेस की जीत पर शर्त लगा रही थीं। छाती ठोक कर बोलीं- कांग्रेस हरियाणा में हारी तो नाम बदल लूंगी। अब लोग कह रहे हैं- सुप्रिया के बजाय शूर्पणखा या मंथरा अथवा ताड़का नाम रख लो। हरियाणा ने राष्ट्रवाद का परचम ऊंचा किया है। समूचा राष्ट्र हरियाणा वासियों का आभारी है।
जिस कश्मीर में हर घर से निकलेगा हिजबुल्ला के नारे लगते हो, चुनाव से पहले और मतदान के बाद भी सुरक्षा बलों व आतंकियों की मुठभेड़ें हो रही थीं, वहां के बहुसंख्यक अनुच्छेद 370 खत्म करने वालों को नहीं जितायेंगे, इसका ज्ञान नरेन्द्र मोदी, अमित शाह को न हो, यह नहीं सोचा जा सकता।
उमर अब्दुल्ला की निरंकुशता अब चलने वाली नहीं। उन्हें लाखों कश्मीरी पंडितों का पुनर्वास करना होगा। पाकिस्तान के गुर्गों पर नकेल कसनी होगी, टारगेट किलिंग रोकनी होगी। डींग हांकने वाला अब्दुल्ला परिवार इसे समझ लें तो मजे में रहेंगे, अन्यथा उनका इलाज तो होकर रहेगा।
इस चुनाव ने दिखा दिया कि भारत में लोकतंत्र और संविधान जीवित है, चुनाव आयोग बंधक नहीं है। मोदी ने पत्थर फेंकने वाले हाथों में कम्प्यूटर पकड़ा दिए यह तब्दीली मोदी व भाजपा की जीत है।
गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’