चित्तौड़गढ़: कमर तक पानी और कंधे पर अर्थी लेकर गुजरते हैं लोग

चित्तौड़गढ़ जिले के राशमी कस्बे के निकटवर्ती कीरखेड़ा में बरसात के दिनों में किसी की मौत होने पर अंतिम यात्रा में लोगों को काफी संघर्ष करना पड़ता है। कंधों पर अर्थी को लेकर कमर या उससे अधिक गहरे पानी से होकर गुजरना पड़ता है। यह समस्या विगत डेढ़ दशक से व्याप्त है। इसके बावजूद लोगों के सुविधाजनक रास्ता बनाने को लेकर जनप्रतिनिधियों या प्रशासन की ओर से वर्षों बाद भी गंभीरता नहीं दिखाई जा रही है। इसका खामियाजा क्षेत्र के लोगों को उठाना पड़ता है।

आलम यह हो जाता है कि लोगों को बरसात के दिनों में अर्थी को कंधे पर लेकर पानी से होकर निकलना पड़ता है। ऐसे ही हालात की बानगी बुधवार को भी देखने को मिली है। यहां कीरखेड़ा में किसी की मौत होने पर अंतिम यात्रा बनास नदी से होकर कस्बे के श्मशान घाट तक आती है। हालांकि, कीरखेड़ा सोमी ग्राम पंचायत का गांव हैं। लेकिन कीरखेड़ा के लोग मूलत: राशमी के ही होने के कारण कस्बे के श्मशान घाट पर ही शव का अंतिम संस्कार किया जाता है। कीरखेड़ा निवासी मोहनी बाई कीर मंगलवार रात को मौत हो गई थी। इसका अंतिम संस्कार बुधवार को हुआ।

सभी रिश्तेदारों के आने के बाद अर्थी लेकर श्मशान के लिए निकले। अर्थी को बनास नदी से होकर श्मशान घाट लाया गया। इस दौरान अंतिम यात्रा में शामिल होने वाले परिजनों एवं रिश्तेदारों को करीब दो से तीन फीट गहरे पानी से होकर गुजरना पड़ा। नदी की चौड़ाई करीब 300 मीटर है। इससे लोगों में खासा आक्रोश भी दिखा। वर्षों पुरानी मांग है, लेकिन उसे पूरा नहीं किया जा रहा है।

कीर समाज के जिलाध्यक्ष रतनलाल कीर ने बताया कि इस समस्या को लेकर कई बार उच्च स्तर पर भी अवगत कराया गया। लेकिन अभी तक रास्ते की समस्या जस की तस है। रतनलाल के अनुसार, यहां पक्का काजवे बना कर या कस्बे से बनास नदी पर बख्तावर पुरा के रास्ते बने एनिकट से पक्का रास्ता बना कर समस्या से निजात दिलाई जा सकती है। पक्का रास्ता नहीं होने से ग्रामणों में आक्रोश है। जब भी बरसात के दौरान किसी का निधन होता है, तब इस समस्या से जूझना पड़ता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here