जे.पी. जयंती पर फिर नौटंकी


लखनऊ के गोमती नगर स्थित जयप्रकाश नारायण अंतर्राष्ट्रीय सेंटर पर जाने को उत्सुक सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने ख़ासाहल्ला मचा दिया। गत वर्ष भी 11 अक्टूबर को अखिलेश जेपीएनआईसी की दीवार फांद कर लोकनायक को श्रद्धांजलि अर्पित करने पहुंचे थे। ऐसी नौटंकी फिर न हो इसलिए संयुक्त पुलिस आयुक्त अमित वर्मा अखिलेश यादव से मिलने उनके विक्रमादित्य मार्ग स्थित बंगले पर पहुंचे और जे.पी. को श्रद्धांजलि के समय कोई हंगामा खड़ा न करने का अनुरोध कर बिना लावलश्कर के गोमतीनगर जाने का आग्रह किया।

लेकिन अखिलेश इस बार भी गत वर्ष से बड़ा हाईवोल्टेज ड्रामा करने पर उतारू थे। उन्होंने पहले से ही पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद पांडेय, विधान परिषद् में नेता विरोधी दल लाल बिहारी यादव, सांसद आर. के. चौधरी, राजेन्द्र चौधरी, रामगोविन्द चौधरी, उदयवीर सिंह, सुनील साजन आदि नेताओं को पहले ही न्यौत दिया था। एक जीप को मंच का रूप देकर जयप्रकाश नारायण की तस्वीर रख दी गई। अखिलेश ठीक 11 बजे बंगले से बाहर निकले, जेपी की तस्वीर को माला पहिनाने में 40 सेकेंड लगाए और फिर जीप पर खड़े होकर भाजपा के विरुद्ध भड़ास निकाली। जे.पी. की जिस समग्र क्रान्ति आन्दोलन ने इन्दिरा गांधी की तानाशाही की जड़ें हिला दी थीं, इमरजेंसी की कालीरातों में विपक्षी नेताओं और आज़ाद कलम के सिपाहियों को जेलों में ठूंसा गया, जनता पार्टी की स्थापना और विपक्षी नेताओं के कुर्सी मोह, इन नेताओं की सत्ता की ललक से हृदय में कांटे के समान अंतर्वेदना झेल रहे जे.पी. की पीड़ां पर अखिलेश एक भी शब्द नहीं बोले।

जयप्रकाश नारायण के महान् ‌विराट व्यक्तित्व को याद करने के बजाय उन्हें याद रहा कि पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक का वोट बटोरू फार्मूला कहीं फेल न हो जाए, इसलिए जे. पी. का नाम लेने के बाद पीडीए का गुणगान करते रहे। जे.पी. का नाम जप और फोटो पर माला वोट खींचने का अच्छा उपाय है।

सन् 1970 से 1977 तक जयप्रकाश नारायण देश के राजनीतिक क्षितिज पर चमचमाते सितारे रहे जिनकी छत्रछाया में तथा जिनके आन्दोलन से अनेक नेता पैदा हुए। जीवन पर जेपी के आदर्शों पर बिहार में गरीबों, पिछड़ों, दलितों की सरकार बनाने व चलाने वाले कर्पूरी ठाकुर भी जे.पी. आंदोलन की उपज थे और शाहबुद्दीन जैसे दुर्दान्त अपराधी तथा अन्य गुंडों को राजनीति में लाकर राजनीति का अपराधीकरण करने वाले तथा ददुवा, फूलन, अतीक, मुख्तार अंसारी के जरिये अपराध का राजनीतिकरण करने वाले लालू यादव और मुलायम सिंह यादव भी जे.पी. आदोंलन की उपज रहे। आज उनकी औलादें अपने पुरखों का अनुसरण कर रहे है।

जिस प्रकार अरविन्द केजरीवाल जैसा महाधूर्त लम्पट नेता, अन्ना हजारे के आन्दोलन से निकला, वैसे ही ये नेता भी जे.पी. के नाम, प्रतिष्ठा और उनके आदर्शों के बहाने आज भी राजनीतिक रोटियां सेकने में जुटे हैं। कांग्रेसी गांधी के नाम को भुनाते हैं और ये जे.पी. के नाम को। उनके उच्च विचारों व महान् आदर्शों से इन्हें कुछ लेना देना नहीं। बस जैसे भी हो, सत्ता का सिंहासन चाहिए ताकि सपरिवार मलाई चाट सकें ।

जहां तक अखिलेश यादव का प्रश्न है, वे 1 जुलाई, 1973 को पैदा हुए और जे.पी. 8 अक्तूबर, 1979 को दिवंगत हुए। तब टीपू मात्र 6 वर्ष के थे। निश्चित ही बाद में जे.पी. के बारे में कुछ जाना होगा।लोकनायक और समग्र क्रांतिके नाम वोट वटोरे जा सकते है, यह समझ आई होगी, तभी उनके जन्मदिन पर हंगामा बरपा होता है।

गोविन्द वर्मा

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here