चंडीगढ़ में हरियाणा विधानसभा की नई इमारत बनाने को लेकर सियासी घमासान मचा हुआ है। पंजाब व हरियाणा के विभाजन के समय किस प्रकार चंडीगढ़ को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया था, उस समय किन मुद्दों पर लिखित रूप में समझौते हुए थे, इन सभी के जानकारों की मानें तो चंडीगढ़ खरड़ तहसील का हिस्सा हुआ करता था।
ये था समझाैता
1 नवंबर 1966 को पंजाब और हरियाणा के विभाजन के बाद बढ़ते जमीनी विवाद और चंडीगढ़ पर हक के लिए 1985 को पूर्व पीएम राजीव गांधी और अकाली नेता संत हरचंद सिंह लोंगोवाल के बीच समझौता हुआ था। इस समझौते के तहत तब पंजाब के फाजिल्का व अबोहर तहसील और इससे सटे 300 गांवों जोकि हिंदी भाषी क्षेत्र थे, उन्हें हरियाणा को देने की शर्त पर समझौता हुआ था। विभाजन के समय चंडीगढ़ को केंद्र शासित प्रदेश घोषित कर दिया था और यहां तक कि 300 गांव हरियाणा देने पर चंडीगढ़ को पूर्ण रूप से पंजाब को दिए जाने की बात कही गई थी।
समय के साथ जब पंजाब के फाजिल्का और अबोहर तहसील के अलावा सटे 300 हिंदी भाषी गांवों काे जब हरियाणा में शामिल करने के लिए कदम उठाया गया, तो इस शर्त को कभी पूरा नहीं किया गया। इसके कारण पंजाब और हरियाणा हमेशा से केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ को अपनी राजधानी के रूप में दावा करते रहे।
24 जुलाई 1985 को पूर्व पीएम राजीव गांधी और लोंगोवाल के बीच हुआ था हस्ताक्षर
पूर्व पीएम राजीव गांधी और अकाली नेता संत हरचंद सिंह लोंगोवाल के बीच 24 जुलाई 1985 को कई मुद्दों पर हस्ताक्षर हुए थे। इसमें चंडीगढ़ पर पंजाब के अधिकार को लेकर भी निर्णय लिया गया था। समझौते के तहत शाह कमीशन की रिपोर्ट को दरकिनार कर दिया गया था, जिसमें चंडीगढ़ को हरियाणा को दिए जाने की बात कही गई थी। राजीव-लोंगोवाल समझौते के तहत पंजाब के फाजिल्का व अबोहर तहसील के 300 हिंदी भाषी गांवों को हरियाणा को देने की बात कही गई थी।
यहां तक कि इसके लिए अलग से कमीशन गठित किया गया था। इस नए कमीशन ने 31 दिसंबर, 1985 को उन गांवों को लेकर अपनी रिपोर्ट दी थी, जोकि हरियाणा में शामिल किए जाने थे। चंडीगढ़ को पंजाब को दिए जाने और इन 300 गांवों को हरियाणा को देने के लिए 26 जनवरी 1986 का दिन तय हुआ था। हालांकि समझौता हस्ताक्षर होने के बाद 20 अगस्त 1985 को पटियाला से 90 किलोमीटर दूर शेरपुरा गांव के पास लोंगोवाल की हत्या कर दी गई थी। यहां तक कि तीसरी बार भी नया कमीशन बनाया गया था, ताकि दोनों राज्यों के बीच जमीनी विवाद के मसलों को हल किया जा सके।
अप्रैल 1986 में बना था तीसरा कमीशन
तीसरे कमीशन का गठन 3 अप्रैल 1986 को हुआ था। इस कमीशन ने 7 जून को अपनी रिपोर्ट दी थी कि पंजाब की 70 हजार एकड़ जमीन हरियाणा को दी जानी चाहिए, लेकिन जुलाई 1986 में केंद्र सरकार ने बढ़ते विवादों के बीच चंडीगढ़ को केंद्र शासित प्रदेश रहने दिए जाने के साथ यह मामला अनिश्चितकालीन समय के लिए टाल दिया था।