हिमाचल हाईकोर्ट ने सीपीएस कानून को फिर अवैध व असांविधानिक दिया करार

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एक बार फिर पीपल फॉर रिस्पांसिबल गवर्नेंस याचिका में सीपीएस कानून को अवैध और असांविधानिक करार दिया है। याचिका में अनुच्छेद 164(1)ए के तहत विधानसभा की कुल मंत्रिपरिषद संख्या 15 फीसदी से अधिक और 12 फीसदी से कम नहीं होनी चाहिए। इसको भी चुनौती दी थी। न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर और न्यायाधीश बिपिन चंद्र नेगी की खंडपीठ ने पहले का फैसले बरकरार रखा और हिमाचल सरकार की ओर से बनाया गया सीपीएस कानून 2006 निरस्त कर दिया।

अदालत में सबसे पहले वर्ष 2016 में पीपल फॉर रिस्पांसिबल गवर्नेंस की ओर से सीपीएस/पीएस एक्ट 2006 की वैधता को चुनौती दी थी। उस समय तत्कालीन वीरभद्र सरकार ने नीरज भारती, राजेश धर्माणी, विनय कुमार, जगजीवन पाल, नंद लाल, रोहित ठाकुर, सोहन लाल ठाकुर, इंद्रदत्त लखनपाल और मनसा राम को सीपीएस नियुक्त किया था।

बाद में इस याचिका में संशोधन किया और साल 2022 में कांग्रेस सरकार की ओर से बनाए गए छह सीपीएस किशोरी लाल, राम कुमार, मोहन लाल ब्राक्टा, सुंदर सिंह ठाकुर, संजय अवस्थी और आशीष बुटेल को पार्टी बनाया गया। इसके बाद इस मामले में भाजपा के सतपाल सत्ती और कल्पना देवी की ओर से दो अन्य याचिकाएं दायर की गईं। अदालत ने इस पर 13 नवंबर को फैसला दिया था।

अदालत ने वीरवार के फैसले में भी मुख्य सचिव को मुख्य संसदीय सचिवों को तुरंत सभी सुविधाओं से हटाने के निर्देश दिए हैं। अदालत ने कहा है कि प्रदेश विधानपालिका सीपीएस पर कोई कानून नहीं बना सकती। वर्ष 2006 में तत्कालीन वीरभद्र सरकार ने विधानमंडल से हिमाचल प्रदेश संसदीय सचिव नियुक्ति, वेतन, भत्ते, शक्तियां, विशेषाधिकार और सुविधाएं अधिनियम 2006 कानून बनाया था। अदालत ने इसे एक बार फिर निरस्त कर दिया है।

पीएस बनाए विधायकों की सदस्यता पर फर्क नहीं पड़ेगा : अनूप
सरकार के महाधिवक्ता अनूप रतन ने कहा कि अदालत ने अपने पहले दिए फैसले को बरकरार रखा है। फैसले का निर्णय ऑन मेरिट नहीं किया है। सरकार ने अदालत के पहले फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। हाईकोर्ट ने जो फैसला दिया है, उससे सीपीएस बनाए गए विधायकों की सदस्यता पर फर्क नहीं पड़ेगा।

सीपीएस मामले में सुप्रीम कोर्ट में कल सुनवाई, सरकार की ओर से सिब्बल करेंगे बहस
सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के 13 नवंबर के दिए गए सीपीएस कानून की वैधता के फैसले को चुनौती दी गई है। शीर्ष अदालत में इस मामले की सुनवाई शुक्रवार को होगी। सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल इस मामले में बहस करेंगे। हिमाचल सरकार की ओर से एसएलपी में मुख्य संसदीय सचिव और संसदीय सचिव के पद पर ऐसी नियुक्ति को दिए गए संरक्षण को भी अवैधता और हिमाचल प्रदेश विधानसभा सदस्य अयोग्यता अधिनियम 1971 की धारा 3 (डी) को चुनौती दी है, जिसके तहत सीपीएस पद को सरंक्षण दिया गया था।

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