महाराष्ट्र तथा झारखंड विधानसभाओं के चुनाव तथा उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान के उप चुनावों के परिणामों पर नेताओं, मीडिया और राजनीतिक विश्लेषकों की टिप्पणियाँ आना शुरू हो गई हैं। कथित सेक्यूलरवादी पत्रकार, जो इन चुनावों को लोकसभा का सेमीफाइनल बता रहे थे, शब्दों को तोड़-मरोड़कर अपनी भविष्यवाणियों को परदे में रखने की कोशिश में जुटे हैं।
कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने वायनाड से अपनी भाई वाली सीट को जीतने तथा झारखंड में मोर्चे की बढ़त को कांग्रेस की बड़ी जीत जग डाला। श्रीनेत ने यूपी उपचुनाव में सपा की 2 सीटों की जीत का श्रेय भी राहुल गांधी को दे डाला।
महाराष्ट्र में हिन्दुत्व की पताका फहराने वाले ठाकरे की शिवसेना को जिहादियों के हाथों गिरवी रखने वाला संजय राउत कह रहा है- ईवीएम ने हरा दिया किन्तु वास्तविकता यह है कि इन चुनाव परिणामों ने राहुल गांधी, शरद पवार, उद्धव को मुंह दिखाने लायक भी नहीं छोड़ा। अब राजनीति के पितामह कहे जाने वाले शरद क्या करेंगे? और बेचारा उद्धव!
राहुल, खड़गे, उद्धव, अखिलेश जिस प्रकार मुस्लिम तुष्टीकरण या जिहादी राजनीति को हवा देने में जुटे थे, और योगी ने ‘बटेंगे तो कटेंगे’ तथा मोदी ने ‘एक रहोगे तो सेफ रहोगे’ का नारा दिया तो मीडिया ने चुनावों को हिन्दुत्व की जीत व हार से जोड़ दिया।
यह भली भांति समझने की आवश्यकता है कि हिन्दुत्व कभी राष्ट्रद्रोही, सांप्रदायिक, जुल्मी या तास्सुबी नहीं हो सकता। हिन्दुत्व राष्ट्र के लिए, हिन्दुस्तानियों के हितों की रक्षा के लिए और विश्व बंधुत्व के लिए मैदान में उतरता है। हिन्दुत्व विरोधी दुराग्रही शक्तियां पहले भी सक्रिय रहीं, आगे भी कुटिलता-कपट से बाज आने वाली नहीं। देश सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय के लक्ष्य को लेकर आगे बढ़ रहा है। राष्ट्रवाद की भावना प्रगति का मार्ग प्रश्स्त करती है। इन चुनाव परिणामों का यही सन्देश है। हिन्दुत्व की जीत को इसी परिपेक्ष्य में देखा जाना चाहिए। यह न सोचें कि आज राहुल हैं, उद्धव व अखिलेश है। देश ने तो महाभारत काल में दुर्योधन और शकुनी को भी झेला है।
गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’