सुप्रीम कोर्ट ने पंद्रह साल से ज्यादा समय बाद दुष्कर्म के मामले में एक व्यक्ति को सोमवार को बरी कर दिया। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि यह अदालत की जिम्मेदारी है कि वह उस व्यक्ति को निशुल्क कानूनी मदद प्रदान करे, जिसके पास प्रतिनिधित्व के लिए वकील न हो। जस्टिस अभय एस. ओका, जस्टिस एहसानुद्दीन अमानुल्ला और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने कहा कि हर आरोपी को अपनी रक्षा करने का अधिकार है, जिसकी संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटी दी गई है और अगर आरोपी के पास वकील है, तो उसको आपराधिक कानून का अच्छा ज्ञान होना चाहिए।
‘केवल दिखावे के लिए नहीं दी जानी चाहिए कानूनी मदद’
शीर्ष कोर्ट ने कहा कि यह कोर्ट की जिम्मेदारी है कि वह व्यक्ति को उचित कानूनी मदद प्रदान करे। अगर आरोपी के पास वकील नहीं है, तो यह प्रत्येक सरकारी वकील की जिम्मेदारी है कि वह अदालत को बताए कि आरोपी को निशुल्क कानूनी मदद की आवश्यकता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि कानूनी मदद केवल दिखावे के लिए नहीं दी जानी चाहिए, बल्कि वह प्रभावी होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर आरोपी को वकील की मदद नहीं मिल रही है, तो उसे रिमांड और जमानत याचिका दाखिल करने के समय जैसे सभी जरूरी कानूनी मदद दी जानी चाहिए।
‘वकीलों की कार्यकुशलता का हो मूल्यांकन’
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि सरकारी वकील की जिम्मेदारी है कि वह यह सुनिश्चित करें कि मुकदमा सही तरीके से और कानून के अनुसार हो। अगर आरोपी को वकील नहीं मिल रहा है, तो सरकारी वकील को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आरोपी को कानूनी सहायता प्रदान की जाए। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण सभी स्तरों पर कानूनी मदद देने वाले वकीलों की कार्यकुशलता का मूल्यांकन करें और यह सुनिश्चित करें कि वे कोर्ट में नियमित रूप से हाजिर रहें।