अजमेर में गरमाया ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’, स्कूल-मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाने का दावा

जयपुर। अजमेर स्थित विश्व प्रसिद्ध ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह के नीचे मंदिर होने के दावे का मामला कोर्ट तक पहुंच चुका है। इस बीच दरगाह से कुछ ही दूर स्थित ऐतिहासिक मस्जिद ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ के स्थान पर पहले मंदिर और संस्कृत पाठशाला होने का दावा किया गया है।

एएसआई से जांच कराने की मांग

यह दावा अजमेर के उप महापौर नीरज जैन ने किया है। उन्होंने राज्य सरकार से वहां नमाज पढ़ने पर रोक लगाने और एएसआई से जांच कराने की मांग की है। उनका दावा है कि नालंदा और तक्षशिला विश्वविद्यालय की तर्ज पर पुरानी धरोहर को नष्ट कर ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ बनाया गया है।

सारदा ने वर्ष 1911 में अजमेर : हिस्टोरिकल एंड डिस्कि्रप्टिव नाम से किताब लिखी थी। किताब में ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ नाम से सातवां अध्याय है। इसमें वे दावा करते हैं कि इसके नाम से यह आम धारणा है कि इसे ढाई दिन में बनाया गया, जबकि इस संरचना को मस्जिद में बदलने में कई वर्ष लगे थे।

मोहम्मद गौरी के आदेश पर अजमेर पर हमला

यह मूल रूप से एक इमारत थी, जिसका इस्तेमाल पाठशाला के रूप में किया जाता था। इसके पश्चिमी भाग में सरस्वती मंदिर था। इसका निर्माण वर्ष 1153 में सम्राट वीसलदेव द्वारा किया गया था। 1192 में गौर (वर्तमान अफगानिस्तान का एक प्रांत) से आए अफगानों ने मोहम्मद गौरी के आदेश पर अजमेर पर हमला किया था और इस दौरान इमारत को क्षति पहुंचाई थी।

कब बनवाई गई ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ मस्जिद

भारतीय पुरातत्व सर्वे (एएसआई) की वेबसाइट पर ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ को लेकर जो जानकारी है, उसके अनुसार यह वास्तव में दिल्ली के पहले सुल्तान कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा 1199 में बनवाई गई मस्जिद है, जो दिल्ली के कुतुब-मीनार परिसर में बनी कुवाल-उल-इस्लाम मस्जिद के समकालीन है।

मस्जिद में मौजूद कई हिंदू प्रतीक

इसके बाद 1213 में सुल्तान इल्तुतमिश ने इसमें घुमावदार मेहराब और छेद वाली दीवार लगाई। हालांकि, परिसर के बरामदे के अंदर बड़ी संख्या में वास्तुशिल्प कलाकृतियां और मंदिरों की मूर्तियां हैं, जो लगभग 11वीं-12वीं शताब्दी के दौरान इसके आसपास एक हिंदू मंदिर के अस्तित्व को दर्शाती हैं।

हरबिलास सारदा की किताब बनी आधार

उन्होंने कहा कि मंदिर और संस्कृत पाठशाला के सबूत वहां पर मौजूद हैं। अढ़ाई दिन का झोपड़ा में खंभों में जगह-जगह देवी-देवताओं की मूर्तियां लगी हुई हैं। स्वास्तिक और कमल के चिह्न हैं, संस्कृत की लिखावट में कई श्लोक भी लिखे हुए हैं। नीरज अपने दावे के पीछे हरबिलास सारदा की किताब को भी आधार मानते हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here