संघर्षों को खत्म करने में नवोन्वेषी और सहभागी कूटनीति करेगी मदद, सभी देशों को आगे आने की जरुरत: जयशंकर

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ब्रिक्स देशों द्वारा व्यापार के लिए नई मुद्रा लाने को लेकर चल रही अटकलों पर स्थिति साफ की है। उन्होंने कहा कि ऐसी कोई योजना नहीं है। अमेरिकी डॉलर से प्रतिस्पर्धा करने के लिए नई मुद्रा शुरू करने के बारे में कोई निर्णय नहीं लिया गया है। उनका ये बयान अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा ब्रिक्स देशों के डी-डॉलरीकरण की नीति अपनाने या डॉलर से दूर जाने की स्थिति में 100 प्रतिशत टैरिफ लगाने की धमकी के बाद आया है।  

इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बारे में भी बात की। उन्होंने ब्रिक्स देशों को ट्रंप की 100 प्रतिशत टैरिफ लगाने वाली हाल की धमकी का जिक्र करते हुए कहा कि हम डी-डॉलरीकरण के पक्ष में कभी नहीं रहे। फिलहाल, ब्रिक्स मुद्रा रखने का कोई प्रस्ताव नहीं है। उन्होंने यह भी बताया कि ब्रिक्स मुद्रा के मुद्दे पर ब्रिक्स देशों की एक समान स्थिति नहीं है। अमेरिका हमारा सबसे बड़ा व्यापार साझेदार है, हमें डॉलर को कमजोर करने में कोई दिलचस्पी नहीं है।

रूस-यूक्रेन और हमास इस्राइल के बीच चल रही जंग के बीच भारत ने इन युद्धों को सुलझाने के लिए नवोन्वेषी, सहभागी कूटनीति पर जोर दिया है। भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने दोहा फोरम में अपने संबोधन में कहा कि सामान्य तौर पर सुई युद्ध जारी रखने की बजाय बातचीत की वास्तविकता की ओर अधिक बढ़ रही है। रूस-यूक्रेन संघर्ष में भारत की भूमिका के बारे में पूछने पर जयशंकर ने कहा कि पीएम मोदी मॉस्को जाकर, राष्ट्रपति (व्लादिमीर) पुतिन से बात करके, साथ ही कीव जाकर राष्ट्रपति जेलेंस्की से बातचीत करके एक-दूसरे तक संदेश पहुंचाकर बातचीत कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हम कोशिश कर रहे हैं कि एक सामान्य वार्ता का अवसर बने। उन्होंने कहा कि पिछले समय में मैंने प्रमुख यूरोपीय नेताओं द्वारा भी इस भावना को व्यक्त करते देखा है।  

कतर के प्रधान मंत्री और विदेश राज्य मंत्री मोहम्मद बिन अब्दुलरहमान के निमंत्रण पर दोहा फोरम में भाग लेने के लिए दोहा पहुंचे हैं। कतर के प्रधान मंत्री और विदेश राज्य मंत्री मोहम्मद बिन अब्दुलरहमान और नॉर्वे के विदेश मंत्री एस्पेन बार्थ ईदे के साथ एक पैनल को संबोधित करते हुए जयशंकर ने कहा कि भारत वैश्विक दक्षिण के 125 अन्य देशों की भावनाओं और हितों को व्यक्त कर रहा है। इन देशों की ईंधन लागत, उनकी भोजन लागत, उनकी मुद्रास्फीति, उनकी उर्वरक लागत इस युद्ध से प्रभावित हुई है।

इस दौरान उन्होंने तेल, उर्वरक और शिपिंग आदि की लागत में बढ़ोतरी के संदर्भ में भारत सहित सभी देशों पर खाड़ी और भूमध्यसागरीय क्षेत्र में संघर्ष स्थितियों के प्रभाव पर के बारे में भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि लाल सागर की स्थिति एशिया के लिए नौवहन को प्रभावित कर रही है। उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि दुनिया के राजनयिकों को खुद से कहना होगा, यह एक भयानक दुनिया है।  दुनिया भर में चल रहे संघर्षों को लेकर उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि ज्यादा जोरदार, नवीन और अधिक सहभागी कूटनीति ही इन्हें हल करने में मददगार हो सकती है।

उन्होंने यह भी कहा कि 60 और 70 के दशक का युग जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद या कुछ पश्चिमी शक्तियां ऐसे संघर्षों को प्रबंधित करती थीं, अब यह हमारे पीछे हैं। आगे उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि अधिक देशों को पश्चिम को नजरअंदाज करने का साहस दिखाने की जरूरत है। इन संघर्षों को खत्म करने के लिए सभी देशों को आगे आने की जरुरत है।

इस दौरान एक सवाल कि क्या रूस, चीन, उत्तर कोरिया और ईरान में अमेरिका विरोधी, पश्चिमवाद विरोधी धुरी बनाने में भारत की कोई भूमिका है? इसका जवाब देते हुए जयशंकर ने कहा कि हर देश के अपने हित होते हैं। वे कुछ पर सहमत हैं, कुछ पर असहमत हैं। कभी-कभी एक ही देश अलग-अलग मुद्दों को अलग-अलग ढंग से संयोजित करता है।  

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