कई तरह की समस्याएं समय के साथ खत्म हो जाती हैं मगर कुछ के समाधान के लिए कोशिशें करनी पड़ती हैं। ऐसी स्थिति में बाधाओं को पार करने के लिए निराशा से बचते हुए एक साकारत्मक सोच और जज्बे की बेहद जरूरत होती है। कुछ ऐसा ही कर दिखाया है मध्य प्रदेश स्थित सिहोर जिले के नरसिंह खेड़ा गांव के किसानों ने। इस क्षेत्र में अत्यधिक बारिश और कभी सूखे की स्थिति बनी रहती है। यानी यहां खेतीबाड़ी के लिए जलवायु जोखिम भरी है।
लिहाजा फसलों को सिंचाई के लिए समय पर पर्याप्त पानी नहीं मिल पाता। पहले कई बरसों तक किसान इसी तरह दिक्कतें झेलते रहे मगर बाद में किसानों ने एक बरसाती नदी पर खुद ही बांध बनाने की ठानी, ताकि फसलों को सिंचित करने के लिए पूरा साल पानी माैजूद रहे। यह पहल इस कदर रंग लाई कि आज सिहोर जिले के विभिन्न गांवों से गुजर रहीं बरसाती नदियों पर किसानों द्वारा 18 साल में 60 बांध बनाए जा चुके हैं।
नरसिंह खेड़ा गांव के किसान किशोर व भंवर सिंह ने बताया कि इस क्षेत्र में सिंचाई के दाैरान पानी की भारी किल्लत रहती थी। पानी खूब बरसता था मगर बरसाती नदियों के जरिये आगे बह जाता था। जब किसानों को सिंचाई के लिए पानी की जरूरत रहती थी तो नहीं मिलता था। लिहाजा वर्ष 2006 में पहली बार किसानों ने खुद बरसाती नदी पर बांध बनाने का निर्णय लिया। इसके लिए उन्हें इंजीनियरिंग सपोर्ट आईटीसी से मिली। उस समय 10.30 लाख रुपये की लागत से 240 मीटर बांध बनाया गया। भंवर सिंह बताते हैं कि बांध के निर्माण हेतु रोजाना विभिन्न गांवों से 10-10 किसानों की ड्यूटी बताैर मजदूर लगाई जाती थी। जिसके चलते साढ़े तीन महीने में पुल का निर्माण कार्य पूरा हो गया।
नागली गांव तक पांच किलोमीटर के दायरे में यहां तीन बांध बनाए जा चुके हैं। जिससे नरसिंह खेड़ा, मोहनपुर और दुर्गपुरा गांव के 550 से अधिक किसानों की फसलों को अब पूरा साल सिंचाई के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी मिल रहा है। इसकी रखरखाव के लिए किसानों ने नरसिंह खेड़ा फार्मर प्राेग्रेसिव ऑर्गेनाइजेशन का गठन किया हुआ है। ये संगठन इस स्रोत से सिंचाई का इस्तेमाल करने वाले किसानों से प्रति एकड़ 50 रुपये प्रति वर्ष वसूलता है, ताकि इससे डैम की नियमित मरम्मत होती रही। इसी माॅडल को सिहोर के अन्य गांवों के किसानों ने भी अपनाया और विभिन्न बरसाती नदियों पर 60 डैम तैयार कर सिंचाई के लिए पानी का संग्रह किया। इन बांधों का रखरखाव किसान खुद करते हैं।
अन्य किसानों ने बताया कि सारा साल सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी होने की वजह से वे अब गेहूं व सोयाबीन की खेती के साथ-साथ चारे की फसल भी लगाते हैं। जिस वजह से किसानों के पास पशुधन भी बढ़ा है। पहले पानी की किल्लत की वजह से यहां चारे की फसल नहीं की जाती थी। पर्याप्त चारा न होने की वजह से किसान भी ज्यादा पशु नहीं पालते थे मगर अब पर्याप्त चारा है तो गांवों में पशु पालन व्यवसाय को भी बढ़ावा मिला है।
सखियां बनकर सशक्त बन रहीं ग्रामीण महिलाएं
सिहोर जिले के विभिन्न गांवों में महिलाएं सरकारी योजनाओं का लाभ उठाकर सशक्त बन रही हैं। इनमें कृषि सखी, पशु सखी व योजना सखियां शामिल हैं। देहखेड़ी गांव की पशु सखी देव कुंवर सूर्यवंशी व गोलूखेड़ी की मंजू बताती हैं कि उन्होंने अनुसूइया स्वयं सहायता समूह गठित किया हुआ है। जिनमें काफी महिला सदस्य हैं। महाराष्ट्र व उतरप्रदेश के विभिन्न संस्थानों में प्रशिक्षण के बाद वे पशु सखी बनीं। आज दुधारू पशुओं के टीकाकरण ,दवा वितरण व अन्य कार्याें में सहयोग कर वे हर माह हजारों रुपये कमा रही हैं। वे पशु मंडी में पशुओं की बिक्री करवाकर भी आय कमाती हैं। उनका समूह बकरी के दूध का साबुन बनाकर भी कमाई कर रहा है।
अब जल्द बकरी फार्म खोलने की तैयारी है। जमुनिया गांव की रामलता वर्मा व बावड़िया गोसाईं गांव की सपना दोनों योजना सखी हैं। वे विभिन्न गांवों में लोगों को न केवल सरकारी योजनाओं की जानकारी देती हैं बल्कि संबंधित योजना में उनका आवेदन भी करवाती हैं। इसके लिए वे सेवाएं देने के लिए प्रति योजना 50 रुपये फीस लेती हैं। इसी तरह कृषि सखी गोलूखेड़ी गांव की लक्ष्मी वर्मा ने बताया कि उन्होंने मां सरस्वती स्वयं सहायतासमूह गठित किया हुआ है। उनके समूह की महिलाएं कृषि सखियां बनकर किसानों को खेतीबाड़ी से जुड़ीं योजनाओं की जानकारी देती हैं। उनके समूह को इससे हर सप्ताह करीब 15 से 20 हजार रुपये तक आय होती है।