भारतीय संविधान के 75 वर्ष पूर्ण होने पर लोकसभा में प्रधानमंत्री के 100 मिनट के भाषण पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा कि नरेंद्र मोदी ने अडानी पर तो कुछ नहीं कहा। देश ने पार्लियामेंट टी.वी. पर देखा था कि प्रियंका संविधान की बहस में कैसे हिमाचल प्रदेश का उदाहरण देकर वहां के किसानों की दुर्दशा का बखान कर रही थीं। किसी ने पीछे से याद दिलाया कि वहां तो आपकी कांग्रेस की सरकार है तो प्रियंका ने सुर बदले। 35 मिनट में 5 मिनट भी संविधान पर नहीं बोल सकीं। भाईजी 26 मिनट बोले और जेब से संविधान तथा मनुस्मृति की प्रतियां निकाल कर बोले कि यहां तो सावरकर का संविधान चल रहा है जिसने किसानों के, नौजवानों के अंगूठे काट दिये हैं। एकलव्य की कहानी सुनाई। इन्हें भी किसी ने चेताया कि 6 वर्ष की आयु वाला युवक नहीं बच्चा होता है। तपस्या की नई व्याख्या की।
भाई-बहन संसद में बोल रहे थे या किसी चुनावी नुक्कड़ सभा में? ये क्या बोलते हैं और जनता क्या समझती है, इसका फैसला बार-बार हो चुका है।
संविधान के प्रति निष्ठा व सम्मान जताते हुए मोदी ने कहा कि लोकतंत्र के प्रति आस्था सदियों पुरानी है और वर्तमान लोकतंत्र की भावना में उसी भारतीय परम्परा के तत्व मौजूद हैं। राजऋषि पुरुषोत्तम दास टंडन, के.एम. मुंशी, डॉ. भीमराव अंबेडकर के कथनों के हवाले से प्रधानमंत्री ने संविधान के मूलतत्व और भारत की एकता के लक्ष्य का उल्लेख करते हुए बताया कि नेहरू, इन्दिरा, राजीव और राहुल ने कब और कैसे संविधान, संसद, न्यायपालिका का अपमान किया और संविधान के बजाए अपनी राय थोपने की कोशिश की। अनुच्छेद 370, 35 ए, शाहबानो प्रकरण, 1975 की इमरजेंसी, मनमोहन सिंह की कैबिनेट प्रस्ताव को फाड़ कर फेकने से लेकर सीताराम केसरी को फुटपाथ पर फेकने जैसी घटनाओं को याद दिलाते हुए मोदी ने कहा- जो अपनी पार्टी के संविधान का पालन नहीं कर सकते वे भारतीय संविधान का नाम लेने के पात्र नहीं। 11 सूत्री संकल्प प्रस्तुत कर नरेंद्र मोदी ने मुस्लिम आरक्षण, तुष्टिकरण का विरोध और समान नागरिक संहिता का जोरदार समर्थन किया और एक खानदान की मानसिकता तथा राजनीतिक परिवारवाद की धज्जियां उड़ा दीं।
सोनिया, प्रियंका, राहुल के पास इनका कोई जवाब नहीं है। मोदी के 11 संकल्पों ने इनकी राजनीति को जकड़ दिया है।
गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’