मनमोहन सिंह का निधन: पूर्व कृषि सचिव यूपीए सरकार में मिले अनुभव को याद कर भावुक

आज पूरे देश में शोक की लहर है। हर कोई पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के निधन से गमगीन है। पूर्व खाद्य एवं कृषि सचिव टी. नंद कुमार ने पूर्व पीएम के साथ काम करने के अपने अनुभवों को साझा किया। उन्होंने उस वक्त सिंह के साथ काम किया था, जब देश कई कठिन परिस्थितियों का सामना कर रहा था।

कल रात हुआ डॉ. मनमोहन सिंह का निधन
भारत के आर्थिक सुधारों के निर्माता मनमोहन सिंह का गुरुवार रात 92 वर्ष की आयु में निधन हो गया। जब 1991 में सिंह ने वित्त मंत्रालय की बागडोर संभाली, तब भारत का राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 8.5 प्रतिशत के करीब था, भुगतान संतुलन घाटा बहुत बड़ा था और चालू खाता घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 3.5 प्रतिशत के करीब था। ऐसे मौके पर सिंह की ओर से प्रस्तुत केंद्र य बजट 1991-92 के बाद नए आर्थिक युग की शुरुआत हुई। यह स्वतंत्र भारत के आर्थिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसमें साहसिक आर्थिक सुधार हुए, लाइसेंस राज का उन्मूलन हुआ और कई क्षेत्रों को निजी और विदेशी खिलाड़ियों के लिए खोला गया ताकि पूंजी का प्रवाह हो सके। सिंह लगातार दो कार्यकालों 2004-09 और 2009-14 तक देश के प्रधानमंत्री रहे। 

साल 2006 को किया याद
नंद कुमार ने 2006 में मनमोहन सिंह के साथ अपनी पहली मुलाकात को याद किया। उन्होंने बताया कि उस समय भारत को कुछ चीज की कमी का सामना करना पड़ रहा था और इसे आयात करने का फैसला किया गया था, जिसकी कई तरफ से आलोचना हो रही थी। उन्होंने आगे कहा कि वह इस मुद्दे पर बात करने के लिए प्रधानमंत्री सिंह के पास गए थे।

पूर्व खाद्य एवं कृषि सचिव ने कहा, ‘मैं इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री से मिलने गया। उन्होंने एक प्रोफेसर की तरह मुझे धैर्यपूर्वक सुना और समझाया कि जब मांग उपलब्धता से अधिक हो तो आपूर्ति बढ़ाने की आवश्यकता होती है। उन्होंने मुझसे कहा था कि वह प्रधानमंत्री के रूप में, किसी भी भारतीय को भूखा नहीं रहने दे सकते। यही उनके फैसलों का आधार था।

कई महत्वपूर्ण पहलें कीं शुरू
उन्होंने आगे कहा, ‘जब साल 2007 में मैंने आपूर्ति संकटों को लेकर आगाह किया तो उन्होंने मुझे इसका समाधान निकालने के लिए प्रेरित किया। इसके परिणामस्वरूप कई महत्वपूर्ण पहलें शुरू की गईं, जैसे कि कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, चावल और गेहूं की पैदावार बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन और आपातकालीन स्थिति के लिए भंडारण मानकों में पांच मिलियन टन की वृद्धि।’

वैश्विक खाद्य संकट के दौरान मनमोहन सिंह ने कहा….
2008 में वैश्विक खाद्य संकट के दौरान, नंद कुमार को घरेलू आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए गैर-बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव रखना पड़ा। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री सिंह ने इस कदम का दृढ़ समर्थन किया, हालांकि इसका विरोध भी हुआ था। मगर डॉ. मनमोहन सिंह ने साफ कहा था कि किसी अन्य देश को खाद्य भेजने से पहले अपने देशवासियों की जरूरतों को ध्यान में रखेंगे। 

कुमार के अनुसार, यह फैसला 2009 में सूखे के दौरान महत्वपूर्ण साबित हुआ, जिससे बिना आयात किए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हुई।

आंकड़ों पर गहरी पकड़, विनम्रता और सरलता…
उन्होंने मनमोहन सिंह के साथ खाद्य और कृषि नीति पर चर्चा करते समय सी. रंगराजन, जो प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष थे, की यादें भी साझा कीं। उन्होंने कहा, ‘दो प्रमुख अर्थशास्त्रियों द्वारा राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर चर्चा की जा रही होती थीं और मैं एक छात्र की तरह उन्हें सुनता था। उनका आंकड़ों पर गहरी पकड़, विनम्रता और सरलता मेरे लिए जीवन के महत्वपूर्ण पाठ थे।’

कुमार के लिए, मनमोहन सिंह सिर्फ प्रधानमंत्री नहीं, बल्कि एक गुरु और मार्गदर्शक थे। उन्होंने कहा, ‘सचिव और प्रधानमंत्री के बीच संबंध नियमों में स्पष्ट रूप से परिभाषित हैं, लेकिन मेरे लिए वह एक गुरु थे। मैं खुद को भाग्यशाली मानता हूं कि मैंने उन्हें जाना और उनके साथ लगभग सात साल काम किया।’

टी. नंद कुमार 2006 से 2010 तक मनमोहन सिंह के कार्यकाल में खाद्य सचिव और कृषि सचिव रहे। बाद में 2010 से 2014 तक राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के सदस्य रहे। 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here