भारत में आम आदमी के लिए कार के सपने को साकार करने वाले, विश्व की ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री के सरताज, जापान की सुजुकी मोटर कम्पनी के मालिक (चेयरमैन) ओसामु सुजुकी का 94 वर्ष की आयु में निधन हो गया। मारुति सुजुकी इंडिया के मानद अध्यक्ष और पद्मभूषण से नवाज़े गए ओसामु के निधन पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दुःख प्रकट किया है।
जापान की सुजुकी और भारत की मारुति सुजुकी आज विश्व में और भारत में कार उद्यम की सरताज हैं किन्तु नई पीढ़ी के जवान नहीं जानते होंगे कि जिस मारुति का डंका भारत में बज रहा है, चार दशक पूर्व वह आर्थिक घोटाले और बदइंतजामी का शिकार बन कर दिवालिया हो गई थी।
पुरानी पीढ़ी के लोग अभी भूले नहीं हैं कि इन्दिरा गांधी के छोटे पुत्र संजय गांधी मारुति कार कंपनी के सूत्रधार थे। संजय के युवामन ने एक स्वदेशी कार की कल्पना की जिसकी कीमत कम हो और जो सर्वसुलभ हो। तब की कल्पना कीजिए जब भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था अवश्य थी लेकिन देश में इन्दिरा गांधी का साम्राज्य कायम था। बड़े पुत्र राजीव गांधी की राजनीति में दिलचस्पी नहीं थी, पायलट थे, जहाज उड़ाने में रुचि थी। छोटे पुत्र संजय गांधी बिगड़ैल शहजादे की तरह राजनीति, सरकार और सिस्टम पर छाये हुए थे। दबदबा इतना था कि वायुयान अपहरण करने वाले को भी विधायक बनवा देते थे।
संजय की हनक के चलते मोहननगर के प्रमुख शराब निर्माता-व्यापारी नरेन्द्रनाथ मोहन (मोहन मीकिन ब्रुअरीज के मालिक), प्रमुख उद्यमी रौनक सिंह और मुजफ्फरनगर की राजनीति के उभरते सितारे विद्याभूषण (रेनबो स्टील्स लि. के चेयरमैन) तथा अन्य कुछ उद्योगपति-पूंजीपति संजय गांधी की कोटरी के सदस्य थे। दूसरे शब्दों में कहें तो ये सब संजय के अति निकटस्थ एवं विश्वसनीय थे।
संजय गांधी ने इनके समक्ष अपने मन की बात रखी कि वे देश में एक ऐसी कार फैक्ट्री लगाना चाहते हैं, जो पूर्णतः स्वदेशी हो तथा उसकी कीमत इतनी कम हो कि आम आदमी भी उसे खरीद सके। शुरु में मारुति टेक्निकल सर्विसेज के नाम से प्राइवेट लिमिटेड कंपनी स्थापित की गई जिस के प्रबंध निदेशक संजय गांधी खुद थे और रौनक सिंह, विद्याभूषण आदि डायरेक्टर थे। पूरे भारत में प्रचार हुआ कि संजय गांधी की कार 40 हजार रुपये की होगी। कंपनी ने एक दशक से अधिक समय तक ‘जनता कार’ का प्रचार जारी रखा। उद्योगपति विद्याभूषण, रौनक सिंह आदि अनेक उद्यमियों ने कम्पनी में बड़ी मात्रा में पूंजी निवेश किया। ‘जनता कार’ की अग्रिम बुकिंग का करोड़ों का एडवांस पैसा भी आया लेकिन संजय की कम्पनी डूबती चली गई। चर्चा रही कि कम्पनी के कई डायरेक्टरों को बड़ी आर्थिक हानि हुई किन्तु कोई भी निर्देशक संजय के सामने चूं नहीं कर सका। इसी दौरान कंपनी का नाम ‘मारुति’ रखने को लेकर बड़ी चर्चाएं हवा में तैरी। कानाफूसी चलीं कि मारुति तो नरेन्द्र मोहन की बेटी का नाम है। मैंने कंपनी के डायरेक्टर और तत्कालीन कैबिनेट मंत्री विद्याभूषण जी से पूछा तो उन्होंने स्पष्ट उत्तर नहीं दिया। हाँ, इतना तो पूरा मुजफ्फरनगर जिला जानता था कि संजय गांधी के साथ उनके घनिष्ट संबंध थे, इन संबंधों के कारण ही वे उत्तरप्रदेश की राजनीति में शीष पर पहुंचे।
पूंजी निवेश डूबने, एडवांस बुकिंग के पैसे फंसने से मारुति को लेकर देश में अजीब सा असंतोष फैला था। इसी बीच वायुयान दुर्घटना में संजय गांधी की मृत्यु हो गई। चूंकि मारुति से संजय का नाम जुड़ा था, इसलिए इंदिरा गांधी परियोजना को जीवित करना चाहती थी। इससे पूर्व जस्टिस एम.सी. गुप्ता से मारुति कंपनी की जांच कराई गई। 1977 में रिपोर्ट आने पर प्रधानमंत्री के विशेष प्रयास एवं रुचि से 24 फरवरी, 1981 को भारत सरकार ने मारुति उद्योग लिमिटेड का जापान से टाईअप किया और गुरुग्राम में भूमि अधिग्रहित कर मारुति कार की फैक्ट्री लगाई। ओसामु सुजुकी ने फैक्ट्री में मारुति सुजुकी 800 का उत्पादन शुरू कराया। गुरुग्राम प्लांट से निकली पहली कार की चाबी सन् 1983 में इंदिरा गांधी ने हरपाल सिंह को सौंपी। मुजफ्फरनगर में अनेक लोगों ने कार के लिए अग्रिम भुगतान किया हुआ था। प्रमुख चिकित्सक डॉ. एस.के.डी. भारद्वाज ने भी कार बुक कर रखी थी। उन्हें 47 हजार 500 रुपये में कार मिली थी। मुजफ्फरनगर में दोबार जिला अधिकारी रहे डॉ योगेन्द्र नारायण ने मुझसे कहा था कि मारुति उद्योग अब बहुत तरक्की करेगा क्यूंकि प्रमुख आईएएस आर.सी.भार्गव इसके चेयरमैन बन गए हैं जो दूरदृष्टा और कुशल प्रशासक है। हुआ भी ऐसा ही। मारुति उद्योग की गाड़ियां भारतीय ग्राहकों की पहली पसन्द हैं और कार बाजार में उनका वर्चस्व है। मारुति उद्योग के विस्तार और उद्योग को आगे ले जाने में स्व. ओसामु सुजुकी की अहम भूमिका रही। विश्व के इस संघर्षशील उद्यमी को हमारा नमन।
गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’