भारत परमाणु ऊर्जा कानून में करेगा बदलाव, पीएम मोदी के अमेरिका दौरे से पहले एलान

नयी दिल्ली। भारत ने शनिवार को परमाणु ऊर्जा मिशन स्थापित करने की योजना की घोषणा की और इस क्षेत्र को नियंत्रित करने वाले दायित्व कानूनों में संशोधन का प्रस्ताव रखा। यह कदम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की संभावित अमेरिका यात्रा से पहले उठाया गया है।

वाशिंगटन द्वारा तीन भारतीय परमाणु संस्थाओं से प्रतिबंध हटाए जाने के दो सप्ताह बाद नयी दिल्ली ने परमाणु दायित्व कानून में संशोधन करने के अपने निर्णय को सार्वजनिक करते हुए कहा कि इस कदम से असैन्य परमाणु क्षेत्र में भारत-अमेरिका सहयोग के लिए नए रास्ते खुलेंगे।

परमाणु क्षति के लिए भारत के असैन्य दायित्व अधिनियम, 2010 की कुछ धाराएं ऐतिहासिक असैन्य परमाणु समझौते के कार्यान्वयन में बाधा बनकर उभरी हैं। यह समझौता दोनों रणनीतिक साझेदारों के बीच लगभग 16 वर्ष पहले हुआ था।

मोदी के इस महीने वाशिंगटन जाने की उम्मीद है, जहां वह अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ व्यापक वार्ता करेंगे जिसमें व्यापार, ऊर्जा एवं रक्षा सहित विभिन्न क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग को और विस्तारित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में 2025-26 के लिए केंद्रीय बजट पेश करते हुए 20,000 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ परमाणु ऊर्जा मिशन स्थापित करने और परमाणु दायित्व कानूनों में संशोधन की योजना की घोषणा की।

उन्होंने कहा, ‘‘हमारे ऊर्जा परिवर्तन प्रयासों के लिए 2047 तक कम से कम 100 गीगावाट परमाणु ऊर्जा का विकास आवश्यक है।’’

सीतारमण ने कहा, ‘‘इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए निजी क्षेत्र के साथ सक्रिय भागीदारी के वास्ते परमाणु ऊर्जा अधिनियम और परमाणु क्षति के लिए नागरिक दायित्व अधिनियम में संशोधन किया जाएगा।’’

वित्त मंत्री ने कहा कि लघु मॉड्यूलर रिएक्टरों (एसएमआर) के अनुसंधान एवं विकास के लिए 20,000 करोड़ रुपये की लागत से परमाणु ऊर्जा मिशन की स्थापना की जाएगी।

उन्होंने कहा, ‘‘वर्ष 2033 तक स्वदेशी रूप से विकसित कम से कम पांच एसएमआर चालू हो जाएंगे।’’

मोदी ने परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में निजी क्षेत्र को बढ़ावा देने के निर्णय को ‘‘ऐतिहासिक’’ बताया।

उन्होंने केन्द्रीय बजट पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा, ‘‘इससे आने वाले समय में देश के विकास में असैन्य परमाणु ऊर्जा का बड़ा योगदान सुनिश्चित होगा।’’

मोदी ने कहा कि असैन्य परमाणु ऊर्जा भविष्य में देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान सुनिश्चित करेगी।

पिछले महीने अमेरिका ने भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र (बार्क), इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केन्द्र (आईजीसीएआर) और इंडियन रेयर अर्थ्स (आईआरई) से प्रतिबंध हटा दिए थे।

जुलाई 2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के साथ बैठक के बाद भारत और अमेरिका ने असैन्य परमाणु ऊर्जा में सहयोग करने की एक महत्वाकांक्षी योजना का अनावरण किया था।

ऐतिहासिक असैन्य परमाणु समझौता अंततः कई वार्ताओं के बाद लगभग तीन वर्ष बाद हुआ।

उम्मीद थी कि इससे अमेरिका के लिए भारत के साथ असैन्य परमाणु प्रौद्योगिकी साझा करने का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा।

हालांकि, भारत में सख्त दायित्व कानूनों सहित विभिन्न कारणों से संबंधित सहयोग आगे नहीं बढ़ सका।

‘जनरल इलेक्ट्रिक’ और ‘वेस्टिंगहाउस’ जैसी अमेरिकी परमाणु रिएक्टर निर्माता कंपनियों ने भारत में परमाणु रिएक्टर स्थापित करने में गहरी रुचि दिखाई थी।

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