सुप्रीम कोर्ट ने असम में मई 2021 से अगस्त 2022 के बीच हुए 171 पुलिस एनकाउंटर्स की जांच की मांग वाली याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा है. सुनवाई शुरू होते ही जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एनके सिंह पीठ पर याचिकाकर्ता से पूछा कि क्या पैर पर गोली लगने का कोई मेडिकल सबूत है क्या? जिसपर भूषण ने कहा कि गोली लगने की बात स्वीकार की गई है. पुलिस कहती है कि वह भाग रहा था.
कोर्ट ने वकील से पूछा कि आपके मुताबिक व्यक्ति का अपहरण कर, जंगल में ले जाकर नजदीक से गोली मार दी है. याचिका में एनकाउंटर्स की जांच की मांग की गई है. इस पर कोर्ट ने कहा था कि एक-एक एनकाउंटर की जांच संभव नही है. कोर्ट ने कहा था कि उसके उन दिशा निर्देशों पालन किया गया या नही, जो उसने पीयूसीएल बनाम महाराष्ट्र सरकार केस में दिए गए थे. पिछली सुनवाई में कोर्ट ने असम मानवाधिकार आयोग द्वारा फर्जी मुठभेड़ के आरोपों से संबंधित जांच से संबंधित डेटा मांगा था.
सुरक्षा बलों का मनोबल गिराने की कोशिश
मामले की सुनवाई के दौरानयाचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की है. भूषण ने कहा कि पीयूसीएल के दिशा निर्देशों का उल्लंघन किया गया है. इतनी बड़ी फर्जी मुठभेड़ों की जब तक स्वतंत्र जांच नही हो जाती तब तक सच्चाई सामने नही आएगी. ऐसे में ये कुछ भी जांच कर रिपोर्ट कोर्ट को सौप देंगे. भूषण ने इस मुठभेड़ की रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में कमेटी बनाकर जांच की मांग की है. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि याचिकाकर्ता सिर्फ पुलिस को निशाना बना रहे हैं.
याचिकाकर्ता का उद्देश्य सुरक्षा बलों का मनोबल को गिराना है. उन्होंने कहा कि आतंकी हमले के कारण कई सुरक्षा बलों ने शहादत दी है. उन्होंने की आत्मसमर्पण करने वाले आतंकियों की संख्या देखे. एसजी मेहता ने कोर्ट को बताया कि 2024 में आतंकवादियों के पास से कितना हथियार बरामद किया गया है. वर्ष 2014 में पीयूसीएल बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले में दिए गए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस एनकाउन्टर के बाद हुई मौतों की जांच के लिए 16 दिशा निर्देश जारी किए थे. इनमें सबूतों को सुरक्षित रखना, बिना किसी देरी के एफआईआर दर्ज करना, पोस्टमार्टम की वीडियोग्राफी करना, स्वतंत्र जांच, मजिस्ट्रेट जांच कराना और मुकदमे का शीघ्र निष्कर्ष सुनिश्चित करना शामिल है.