14 मार्च को जम्मू-कश्मीर में ‘शहीद दिवस’ घोषित किया जाए, कश्मीरी पंडितों ने की मांग

कश्मीरी पंडितों ने मांग की है कि 14 मार्च को जम्मू-कश्मीर में ‘शहीद दिवस’ घोषित किया जाना चाहिए. कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति ने एक बयान में कहा कि समुदाय की ओर से समिति मांग करती है कि इस तारीख को आधिकारिक तौर पर मान्यता दी जाए और केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर में शहीद दिवस के रूप में घोषित किया जाए ताकि मारे गए लोगों को सम्मानित किया जा सके और यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनके दुख को इतिहास से कभी मिटाया न जाए.

14 मार्च 1989 में इसी दिन कश्मीरी पंडितों के समुदाय की एक महिला प्रभावती श्रीनगर के हरि सिंह हाई स्ट्रीट पर ग्रेनेड हमले में घायल हो गई थी. वह केपी के खिलाफ लक्षित हिंसा की पहली शिकार बनीं. इस कदम का उद्देश्य आतंकवाद में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देना और उनके दुख को इतिहास से मिटने से रोकना है. कश्मीरी पंडित समुदाय को जम्मू-कश्मीर में पिछले तीन दशकों से आतंकवाद का सामना करना पड़ा है.

‘झूठी बातों से सच्चाई को दफनाना चाहते हैं लोग’

समिति का कहना है कि उनके हिंसक पलायन की सच्चाई से बहुसंख्यक समुदाय का एक हिस्सा जानबूझकर इनकार करता है. उन पर किए गए अत्याचार को स्वीकार नहीं करता. समिति ने का कहना है कि इससे भी बड़ी बात ये उन्होंने इतिहास को फिर से लिखने, तथ्यों को विकृत करने और खुद को दोष मुक्त करने के लिए झूठी कहानियां गढ़ने के मिशन पर काम करना शुरू कर दिया है. उनका कहना है कि गलत सूचना और झूठी बातों से ये लोग सच्चाई को दफनाना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि ये हेरफेर न सिर्फ पीड़ितों का अपमान है बल्कि यह उत्पीड़न का दूसरा अधिक कपटी रूप है.

14 मार्च को शहीद दिवस घोषित करने की मांग

कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति का कहना है कि 14 मार्च को शहीद दिवस घोषित करने की मांग सिर्फ यादों के बारे में नहीं है बल्कि ये इतिहास को दोबारा प्राप्त करने के बारे में है. समिति ने कहा कि यह उस समय को स्वीकार करने के बारे में है जो काफी लंबे समय से अनदेखा किया जा रहा है. समिति ने कहा कि इस दिन का सम्मान करके हम यह सुनिश्चित करते हैं कि अतीत भयावहता को न तो भुलाया जाए और इसे दोबारा से दोहराया जाए. समिति का कहना है कि कश्मीरी पंडितों के बलिदान को इतिहास के पन्नों में सम्मान दिया जाता चाहिए.

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