परिसीमन पर संसद में जमकर हंगामा, दक्षिण के सांसदों का प्रदर्शन

साल 2026 में जनगणना के बाद होने वाले परिसीमन पर सियासी महाभारत थम नहीं रही. दक्षिण के राज्यों के सांसदों का कहना है कि, जनसंख्या के आधार पर लोकसभा सीटों के परिसीमन से उनका सियासी नुकसान है. जबकि उत्तरी राज्यों को इससे बड़ा राजनीतिक लाभ होगा. इस मुद्दे पर गुरुवार को संसद के दोनों सदनों में जमकर हंगामा हुआ, जिसके चलते सदन की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी.

डीएमके सहित दक्षिण राज्यों के सांसदों ने सदन में परिसीमन का मुद्दा उठाया, जिसको कांग्रेस सांसदों ने भी खुलकर समर्थन किया. दक्षिण के सांसदों की दलील है कि, जनगणना के बाद अगर लोकसभा की 543 सीटे ही दोबारा राज्यों के बीच बांटी जाती है तो तमिलनाडु और दक्षिण भारत के साथ अन्याय होगा. वहीं, इसको लेकर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन ने 22 मार्च को चेन्नई के बैठक बुलाई है. जहां दक्षिण की पार्टियों को इस मुद्दे पर एकजुट कर सरकार पर दबाव बनाया जाएगा.

दक्षिण के राज्यों की मांग जायज- कांग्रेस

तेलंगाना से कांग्रेस सांसद चमला किरण रेड्डी ने कहा कि चेन्नई की बैठक में कांग्रेस शासित तेलंगाना के सीएम रेवन्त रेड्डी भी शामिल होंगे. दक्षिण के सांसदों का कहना है कि फैमिली प्लानिंग/जनसंख्या नियंत्रण करने के लिए या सरकारी योजना का पालन करने के लिए उनको दंडित नहीं कर सकते. उन राज्यों को अवार्ड नहीं दे सकते जिन्होंने योजना का पालन नहीं किया. परिसीमन के विरोध में डीएमके सांसदों ने टी शर्ट पहनकर संसद के अंदर और बाहर दोनों जगह प्रदर्शन किया.

वहीं, कांग्रेस ने भी अपने दक्षिण भारतीय सांसदों के दबाव में समर्थन करते हुए कहा कि, दक्षिण के राज्यों की मांग जायज है. दक्षिण के दलों का मानना है कि, अगर लोकसभा की सीटें बढ़ाकर इसकी संख्या 888 कर देते हैं तब भी जनसंख्या के मुताबिक बंटवारे में तमिलनाडु और (पांडिचेरी) को 40 की जगह 50 सीटें ही मिलेंगी. जबकि यूपी को इसका ज्यादा फायदा होगा. उत्तर प्रदेश को 80 की जगह 150 सीटें मिलेंगी, ये उनको स्वीकार नहीं है.

गहमागहमी तेज होना लाजमी है- कांग्रेस सांसद

कांग्रेस भी अपने दक्षिण भारत के सांसदों के दबाव में समर्थन में उतर आई. कांग्रेस सांसद विवेक तनखा ने कहा कि आखिर परिसीमन और राज्यों में लोकसभा सीटों की संख्या सियासी लिहाज से बहुत बड़ा मुद्दा है. यही वजह है कि, शुरूआत में तो परिसीमन के बाद सीटें बढ़ाई गईं लेकिन बाद में इंदिरा गांधी, अटल बिहारी वाजपेई सरकारों ने भी संविधान संशोधन कर परिसीमन को रोक दिया था. कई दशक बाद 2026 में परिसीमन का मसला सामने आया, तो गहमागहमी तेज होना लाजमी ही है.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here