इलाहाबाद हाई कोर्ट में शुक्रवार को फतेहपुर में मस्जिद ध्वस्तीकरण के डीएम के आदेश के खिलाफ याचिका पर सुनवाई हुई. हाई कोर्ट ने अगली सुनवाई तक डीएम के ध्वस्तीकरण आदेश पर रोक लगा दी है. हाई कोर्ट ने याचिका पर राज्य सरकार से तीन हफ्ते में काउंटर एफिडेविट मांगा है. उसके अगले दो हफ्ते के अंदर याची से रिजॉइंडर दाखिल करने के लिए कहा है. याचिका में डीएम द्वारा 22 अगस्त 2024 को पारित ध्वस्तीकरण के आदेश को चुनौती दी गई है. अब इस मामले में 23 मई को सुनवाई होगी.
हाई कोर्ट में वक्फ सुन्नी मदीना मस्जिद कमेटी के अध्यक्ष हैदर अली की ओर से याचिका दाखिल की गई है. इस पर शुक्रवार को जस्टिस मनीष कुमार निगम की सिंगल बेंच के सामने सीनियर एडवोकेट फरमान अहमद नकवी ने पक्ष रखा. सरकार की ओर से चीफ स्टैंडिंग काउंसिल जे एन मौर्य ने दलीलें दी. याची का कहना है कि 1976 में ग्राम सभा मलवा द्वारा दी गई तीन बिस्वा जमीन पर मस्जिद बनी हुई है.
अब तक उस आदेश पर कोई अमल नहीं हुआ
याची का कहना है कि यह जमीन अब तालाब की भूमि बताई जा रही है. इसी जमीन के एक हिस्से में 6-7 अन्य लोग काबिज हैं, जिन्हें 2021 में हटाने का आदेश हुआ है. मगर, अब तक उस आदेश पर कोई अमल नहीं हुआ है. जबकि जिस जमीन पर मस्जिद बनी हुई है, 26 दिन में सभी कार्यवाही पूरी कर ली गई है. मस्जिद कमेटी को पक्ष रखने का मौका तक नहीं दिया गया.
डीएम ने अपील खारिज कर आदेश दे दिया
उन्होंने कहा कि तहसीलदार ने तालाब की जमीन बताते हुए नोटिस जारी किया. इसके खिलाफ डीएम के समक्ष मस्जिद कमेटी ने अपील दाखिल की. डीएम ने अपील खारिज करते हुए ध्वस्तीकरण आदेश पारित कर दिया है. डीएम के इसी ध्वस्तीकरण के आदेश को इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है.
शादियों से जुड़े एक अन्य मामले में भी हाई कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया. एक मामले में सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा है कि हिंदू महिला और पुरुष की आर्य समाज मंदिर में अगर वैदिक रीति रिवाज से शादी हुई है तो हिंदू विवाह अधिनियम-1955 के तहत वैध है. शादी की जगह मंदिर हो, घर हो या खुली जगह, ये मायने नहीं रखता. इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने एक वो याचिका खारिज कर दी, जिसमें बरेली के हफीजगंज पुलिस थाने में दर्ज दहेज की मांग के मामले को रद्द करने का अनुरोध किया गया था.