जब देश में 2047 तक हिन्दुस्तान को इस्लामी देश बनाने की जंग दशकों पहले से छिड़ चुकी है, तब भारत की प्राचीन संस्कृति तथा पुरातन सांस्कृतिक परम्पराओं की रक्षा एवं संवर्द्धन तथा समर्थ भारत बनाने के नाम पर सत्ता से चिपके रहने की मुहिम चल चल रही है। भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशा अल्लाह इंशा अल्लाह के नारे लगाने वालों, सिर धड़ से जुदा की धमकी देने वालों और सड़कों पर उतर कर खूंरेजी करने का खुला ऐलान करने वालों का हौसला सातवें आसमान पर है।
कोई चीज़ छिपी नहीं, सब आइने की तरह साफ है। सीएए, एनारसी, वक्फ, सब बहाना है। गजवा-ए-हिंद ही एक मात्र मुद्दा है बाकी सब भटकाव है, सत्ताधारियों और राष्ट्र वादियों को भरमाने भटकाने का हथकंडा!
नरेन्द्र मोदी विदेशों के दौरे कर-कर वहां के सर्वोच्च सम्मान हासिल कर गदगद हैं और डॉ. मोहन भागवत राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की 100 वर्षीय जयंती का प्रबंध करते घूम रहे हैं। डॉ. भागवत ने हर मस्जिद के नीचे शिवाला न ढूंढने का जुमला दागा तो सुनील आंबेकर तथा दत्तात्रेय होसबाले को दुधारी तलवार चलाने की छूट दे दी।
आखिर ये किस दुनिया में जी रहे हैं? मुर्शिदाबाद का ट्रेलर देखने के बाद भी शुतुरमुर्ग की भांति गर्दन जमीन में क्यों गड़ायें हैं? क्या ये समझ नहीं पा रहे हैं कि महासंग्राम से पहले छोटी-छोटी लड़ाइयां लड़ी जा रही है जो कश्मीरी पंडितों के पलायन से मुर्शिदाबाद के हिन्दू उत्पीड़न तक पहुंच चुकी हैं। भौतिक उपलब्धियों पर आत्ममुग्ध होने के बजाय दोनों नहीं तीसरा नेत्र भी खुला रखने का समय है।
देश देख चुका है कि जुबैर पंचर जैसा यूट्यूबर भारत में कैसे आग लगवा सकता है और हिन्दुस्तान को इस्लामी देशों से बेइज्जत करा सकता है। सब जानते हैं कि मौलाना टी.वी डिबेट में बार-बार, हर क्षण हिन्दू देवी देवताओं तथा शिव पार्वती पर अभद्र टिप्पणी कर रहा था। मौलाना की दुष्टता-दुस्साहस की अवहेलना कर नूपुर शर्मा को राजनीतिक फांसी दे दी गई। अब नड्डा जी निशिकान्त दुबे को हड़का रहें हैं जो संसद में बोलते समय कड़वी सच्चाइयों को ठोस साक्ष्यों के साथ उजागर करते हैं। चार बार सांसद चुने गए निशिकान्त दुबे को करोड़ों हिन्दुस्तानी विश्वास के साथ सुनते हैं। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को और नागपुर वालों को सोचना होगा कि नूपुर शर्मा की भांति निशिकान्त दुबे या उन अन्य निष्ठावान लोगों को अपमानित करना आत्मघाती होगा और उनके मिशन की जड़ें खोखली करेगा। अटल जी ने तो न दैन्यं न पलायनम् का मार्ग सुझाया था, आप राहुल के डर गये, डर गये वाले रास्ते पर क्यों चलने लगे?
गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’