भारत के उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ जी ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा महामहिम राष्ट्रपति को आदेश देने को सीमाओं का अतिक्रमण बताया था। संविधान, लोकतंत्र एवं संसद की भूमिका पर प्रबुद्धजनों ने अपने अपने दृष्टिकोण से विचार प्रकट किये थे। हमने भी धनखड़ साहब की टिप्पणी को लेकर विचार व्यक्त किये थे।
अनेक सज्जनों ने इस टिप्पणी से सहमति व्यक्त की है, उनको धन्यवाद। चन्द लोगों ने, जिनमें हमारे अपने प्रिय लोग है, जिनको में स्वयं से भी अधिक चाहता हूँ। उन्होंने सीधे-सीधे असहमति व्यक्त करने के बजाय मेरे सठियाने (बुढ़ापे में बुद्धि विचलित होने) की बात लिखी है तो एक बड़े समाचार पत्र के वरिष्ठ पत्रकार एवं ब्यूरो चीफ ने निशिकान्त दुबे की कुंडली खंगालने का सद्परामर्श दिया है। इन महानुभावों में वे सज्जन भी हैं जो निष्पक्ष लेखन या निष्पक्ष टिप्पणी को गोदी मीडिया वाले बताते हैं। दूसरों पर असहिष्णुता का आरोप लगाने वाले महानुभाव अपने विचारों को श्रेष्ठ बताकर लादने की कोशिश करते हैं किन्तु इस में अच्छाई यह कि विचार मंथन से सच्चाई सामने आती है, असहमति जताने वालों का भी बहुत-बहुत आभार।
लोकतंत्र के हित में न्यायपालिका की आज़ादी और तानाशाही पर अंकुश की बात उठाई गई। बिल्कुल सही। सत्ता का मद व्यक्ति को तानाशाही की ओर धकेलता है, उनको और भी अधिक जो खानदानी तानाशाह और आदतन तुनक मिजाज तथा असहिष्णु होते हैं। विरोध, असहमति उन के रक्त में है। तानाशाही प्रवृत्ति को ढकने के लिए लोकतंत्र का लबादा ओढ़ लेते हैं।
चलिये सन् 1971 में जब रायबरेली से इंदिरा गांधी ने सोशलिस्ट राजनारायण को हराया था। इंदिरा गांधी ने अपने चहेते (अपर डिवीजन क्लर्क) यशपाल कपूर को मुख्य चुनाव एजेंट बनाया। ये वही यशपाल कपूर थे जिनकी लड़की की शादी राजा-महाराजों की औलादों की शादियों से कहीं बड़ी शान-ओ-शौकत से हुई थी और इंदिरा जी पूरे शादी समारोह में यशपाल कपूर की हाजरी बजाती रहीं। इस शादी के राजसी ठाठ-बाट और इन्दिरा गांधी की संलिप्ता के लिए मीडिया में खूब छीछालेदर हुई थी।
यही सज्जन इंदिरा जी के चुनाव अभियान को संभाले हुए थे। ऐसे में इंदिरा गांधी को जीतना और राजनारायण को हारना था। हार के बाद राजनारायण जी ने चुनाव में भ्रष्ट आचरण अपनाने के आरोप लगा कर इंदिरा गांधी के निर्वाचन को चुनौती देते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दायर की।
यह याचिका जस्टिस जगमोहनलाल सिन्हा की कोर्ट में डाली गई। याचिका दर्ज होते ही न्यायधीश पर भांति-भांति के दबाव पड़ने शुरू हो गये। इंदिरा गांधी के निजी चिकित्सक डॉ माथुर को उनके पास भेजा गया। सर्वोच्च न्यायालय में जस्टिस बना कर भेजने का प्रलोभन दिया गया। किंतु वे नहीं माने। इंदिरा गांधी को जस्टिस जगमोहनलाल सिन्हा के समक्ष उपस्थित होकर 5 घंटों तक हुई जिरह का जवाब देना पड़ा। उन्हें बैठने के लिए कुर्सी उपलब्ध कराई गई थी किन्तु जस्टिस सिन्हा के पेशकार ने कह दिया था कि इंदिरा गांधी के अदालत में प्रवेश करने पर कोई अपने स्थान से उठेगा नहीं। इंदिरा जी के कोर्ट में प्रविष्ट होने पर उनके वकील एस.सी.खरे ही कुर्सी छोड़ कर खड़े हुए थे।
हर प्रकार के दबाव व धमकियों को दरकिनार कर इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस जगमोहनलाल सिन्हा ने 12 जून 1975 को राजनारायण द्वारा दायर याचिका पर 258 पृष्ठों के अपने निर्णय को सुनाने से पूर्व कहा- ‘निर्णय आने पर कोर्ट रूम में उपस्थित कोई शख्स तालियां नहीं बजाएगा, कोई शब्द मुंह से नहीं निकालेगा। फिर कहा- अपील मंजूर।’
लोग कोर्ट रूम से बाहर को भागे। बाहर भारी कोलाहल था। कोर्ट के भीतर पत्रकारों, रिपोर्टरों का जमघट। जस्टिस सिन्हा के फैसले के ओपनिंग पैराग्राफ में लिखा था- इंदिरा गांधी के चुनाव में सरकारी प्रभाव व सरकारी साधनों का दुरुपयोग प्रमाणित हो गया। यशपाल कपूर राजकीय सेवा में रहते हुए इंदिरा गाँधी के चुनाव का संचालन करते रहे। इंदिरा गांधी की चुनावी सभाओं का बंदोबस्त सरकारी पैसे से होना प्रमाणित हुआ है। 258 पृष्ठों के फैसले में बहुत कुछ है। जो लोग कांग्रेस को न्यायपालिका का रक्षक एवं उसका हिमायती बताते हैं, उन्हें जस्टिस जगमोहनलाल सिन्हा का यह पूरा जजमेंट पढ़ना चाहिए। कांग्रेस न्यायपालिका का कितना सम्मान करती है, यह जानने के लिए उच्च व सर्वोच्च न्यायालयों के फैसलों को उलटने के लिए इंदिरा गांधी व राजीव गांधी के प्रयासों से भी अवगत होना चाहिए।
जस्टिस जगमोहनलाल सिन्हा के फैसले पर तत्कालीन उपराष्ट्रपति मोहम्मद हिदायतुल्लाह ने कहा था- ‘जस्टिस सिन्हा ने नया इतिहास रचा है जैसे अमेरिका के वाटरगेट कांड के जज जॉन सिरिका ने रचा था।’ तब निक्सन को राष्ट्रपति पद छोड़ना पड़ा था। और न्यायपालिका की आजादी तथा दबाव मुक्त रखने का ढोल पीटने वाली कांग्रेस ने क्या किया, यह आगे लिखेंगे। बूढ़े को बहुत कुछ याद है।
गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’