मोदी सरकार ने जनगणना को मंजूरी दे दी है. जाति जनगणना भी इसका हिस्सा रहेगी. देश में आखिरी पूर्ण जाति जनगणना 1931 में हुई थी. साल 1941 में जनगणना कराई तो गई थी लेकिन उसके आंकड़े सामने नहीं रखे गए. वहीं, 1951 में हुई जाति जनगणना में सिर्फ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को ही शामिल किया गया. अब फिर से जाति जनगणना होगी. भारत में सामान्य जनगणना 1872 में अंग्रेजों के दौर से शुरू हुई थी. यह आखिरी बार 2011 में हुई. नियम के मुताबिक, इसे 2021 में होना था, लेकिन कोविड के कारण ऐसा नहीं हो पाया.
अब जनगणना की घोषणा के साथ जाति जनगणना कराने की बात भी कही गई है. हालांकि, देश में जाति सर्वे जरूर होते रहे हैं. बिहार और तेलंगाना में हुआ जाति सर्वेक्षण इसका सबसे ताजा उदाहरण है. जानिए जाति जनगणना और जाति सर्वे में अंतर क्या है.
जाति जनगणना और जाति सर्वे के अंतर को समझें
जाति जनगणना और जाति सर्वे में अंतर लीगल स्टेटस, इसके तरीके और अथॉरिटी के आधार पर किया जाता है. जाति जनगणना राष्ट्रीय जनगणना का हिस्सा होती है. वहीं जाति सर्वे राज्यस्तर पर किया जाता है. जाति जनगणना को करने का काम केंद्र सरकार का होता है और इसके लिए बकायदा कानून बना हुआ है. वहीं, जाति सर्वे राज्य सरकार या स्वतंत्र एजेंसियां कराती हैं.
जनगणना के लिए सेंसस एक्ट 1948 है. यह अधिनियम केंद्र सरकार को ताकत देता है कि वो ही राष्ट्रीय जनगणना करा सकती है और इससे जुड़ी गाइडलाइन में बदलाव कर सकती है. जाति सर्वे में ऐसा नहीं होता. सेंसस एक्ट में इसको लेकर कोई प्रावधान नहीं है. कास्ट सर्वे राज्य सरकार की गाइडलाइन के मुताबिक होता है.
जाति जनगणना को राष्ट्रीय स्तर पर कराया जाता है लेकिन कास्ट सर्वे एक राज्य या एक छोटे हिस्से तक सीमित रहता है. जाति जनगणना का डाटा गोपनीय रखा जाता है, लेकिन कास्ट सर्वे का डाटा राज्य सरकार की गाइडलाइन और सिक्योरिटी लॉ पर निर्भर है.
कैसे रहे राज्यों के जाति सर्वे?
- बिहार का जाति सर्वे: अक्टूबर 2023 में बिहार में जातीय सर्वे जारी किया गया. सर्वे में 214 जातियों को शामिल किया गया था. इसमें अनुसूचित जाति (SC) की 22, अनुसूचित जनजाति (ST) की 32, पिछड़ा वर्ग (BC) की 30, अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) की 113 और सामान्य वर्ग की 7 जातियों को हिस्सा बनाया गया. सर्वे कहता है कि राज्य की आबादी 13 करोड़ है और इसमें 63.14% आबादी OBC (BC + EBC) वर्ग से ताल्लुक रखती है. बिहार में 94 लाख गरीब परिवार हैं. यहां के मात्र 6.47% लोग ग्रेजुएट हैं. इनमें सामान्य वर्ग के 14.54%, EBC में 4.44%, SC में 3.12% और ST में 3.53% लोग स्नातक हैं.
- कर्नाटक का कास्ट सर्वे: कर्नाटक में साल 2014 में तत्कालीन सिद्धारमैया सरकार ने जातीय सर्वे कराया था. इसे सामाजिक एवं आर्थिक सर्वे नाम दिया गया, लेकिन सरकार ने इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया, लेकिन कुछ बातें सामने आईं. इसके कारण कर्नाटक में अचानक 192 से अधिक नई जातियां सामने आईं. रिपोर्ट के मुताबिक, ओबीसी की संख्या में भारी वृद्धि हुई वहीं लिंगायत और वोक्कालिगा जैसे प्रमुख समुदाय के लोगों की संख्या घटी. इसके बाद कर्नाटक में कभी जातीय सर्वे नहीं हुआ.
- तेलंगाना का जातीय सर्वे: फरवरी 2025 में हुए इस सर्वे में राज्य की आबादी 3.70 बताई गई. रिपोर्ट कहती है, इसमें मुस्लिम अल्पसंख्यक को छोड़कर पिछड़े वर्ग की हिस्सेदारी 46.25 फीसदी है. इसके बाद अनुसूचित जाति (17.43%), अनुसूचित जनजाति (10.45%), मुस्लिम पिछड़े वर्ग (10.08%) और अन्य जातियां (13.31%) शामिल रहीं.