वक्फ कानून को लेकर कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई हैं। इस पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने अपना जवाब पेश किया, जिस पर अब मुस्लिम पक्ष ने हलफनामा दाखिल किया है। जमील मर्चेंट और मौलाना अरशद मदनी की ओर से दाखिल किए गए हलफनामे में कहा गया है कि वक्फ से संबंधित नया कानून उचित व्यवस्था नहीं है। सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर 5 मई को सुनवाई करेगा।
हलफनामे में याचिकाकर्ताओं ने कहा कि सरकार का जवाब यह साबित करता है कि वह संविधान में नागरिकों को दिए गए अधिकारों को समझने में असफल है। याचिकाकर्ताओं ने अपने हलफनामे में यह भी कहा कि वक्फ संशोधन कानून धार्मिक नागरिक अधिकारों का उल्लंघन करेगा, और उन्होंने अदालत से इसे रद्द करने की अपील की।
याचिकाकर्ताओं ने अपने हलफनामे में 2020 के सुप्रीम कोर्ट के मोहम्मद सलीम फैसले का संदर्भ दिया, जिसमें धार्मिक अधिकारों की व्याख्या की गई थी। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा कानून को उचित ठहराने की कोशिश गलत है।
हलफनामे में यह भी कहा गया कि सरकार का यह तर्क कि संसद द्वारा बनाए गए कानून पर अदालत रोक नहीं लगा सकती, संविधान के खिलाफ है। जब नागरिक अधिकारों का उल्लंघन होता है, तो अदालत को रोक लगाने का अधिकार है।
सुप्रीम कोर्ट ने नई याचिका पर विचार करने से किया इनकार
सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली एक नई याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ 5 मई को मौजूदा याचिकाओं पर सुनवाई करेगी। पीठ ने पहले स्पष्ट किया था कि वह 70 से अधिक याचिकाओं में से केवल पांच की सुनवाई करेगी। इसके अलावा, उन्होंने कहा कि नई याचिकाओं पर विचार नहीं किया जाएगा। सीजेआई ने याचिकाकर्ता मोहम्मद सुल्तान के वकील से कहा, “यदि आपके पास अतिरिक्त आधार हैं, तो आप हस्तक्षेप आवेदन दायर कर सकते हैं।”
29 अप्रैल को पीठ ने इस अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली 13 याचिकाओं पर भी विचार करने से इनकार कर दिया था।