साल 2013 में मुजफ्फरनगर में हुए सांप्रदायिक दंगों के दौरान लिसाढ़ गांव में एक घर पर हमले, लूट और आगजनी के मामले में कोर्ट ने 11 आरोपियों को पर्याप्त साक्ष्य न होने के कारण बरी कर दिया है। इस केस की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट में अपर जिला जज द्वारा की जा रही थी।
घटना 8 सितंबर 2013 की है, जब पीड़ित उमरदीन अपने परिवार के साथ घर में मौजूद थे। उमरदीन के अनुसार, तभी भीड़ ने उनके घर पर धावा बोल दिया और सोना, चांदी, नकदी समेत लगभग 7.5 लाख रुपये का सामान लूट लिया। इसके बाद घर को आग के हवाले कर दिया गया। किसी तरह परिवार वहां से जान बचाकर भाग निकला और उन्होंने झिंझाना में अपने भाई के घर शरण ली। उमरदीन ने घटना के 13 दिन बाद रिपोर्ट दर्ज कराई थी।
पुलिस जांच के बाद मामले में दो चार्जशीट दाखिल की गईं—एक 15 मई और दूसरी 25 फरवरी 2015 को, जिसमें लिसाढ़ के 11 लोगों को आरोपी बनाया गया था। इनमें सुभाष, पप्पू, मनवीर, विनोद, प्रमोद, नरेंद्र, राम किशन, रामकुमार, मोहित, विजय और राजेन्द्र शामिल थे।
मुकदमे की सुनवाई के दौरान उमरदीन और उनका बेटा जियाउल हक अपने पूर्व बयानों से मुकर गए। अदालत ने अभियोजन पक्ष की अपील पर दोनों को पक्षद्रोही घोषित कर दिया। वहीं, तीसरी गवाह बाला (उमरदीन की पत्नी) की मृत्यु गवाही से पहले ही हो गई थी। इन परिस्थितियों में कोर्ट ने सभी आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया।