शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बंगलूरू स्थित हरे कृष्ण मंदिर इस्कॉन सोसाइटी का है। शीर्ष अदालत ने इस्कॉन बंगलूरू की याचिका को स्वीकार कर लिया, जिसमें कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी गई थी। उच्च न्यायालय ने बंगलूरू के प्रतिष्ठित हरे कृष्ण मंदिर और शैक्षणिक परिसर पर इस्कॉन मुंबई का अधिकार माना था। न्यायमूर्ति एएस ओका और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने यह निर्णय सुनाया।
डेढ़ दशक का कानूनी संघर्ष
इस कानूनी विवाद की शुरुआत 2011 में हुई थी, जब इस्कॉन बंगलूरू ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के 23 मई, 2011 के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इस याचिका में इस्कॉन बंगलूरू ने 2009 में स्थानीय अदालत द्वारा दिए गए निर्णय को बरकरार रखने की मांग की थी, जिसमें मंदिर पर नियंत्रण का अधिकार बंगलूरू इकाई को दिया गया था।
फैसले में बदलाव का सिलसिला
शुरुआत में ट्रायल कोर्ट ने इस्कॉन बंगलूरू के पक्ष में फैसला सुनाया था और इस्कॉन मुंबई के दावे को खारिज कर दिया था। लेकिन बाद में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को पलटते हुए इस्कॉन मुंबई के पक्ष में निर्णय दिया। इस फैसले के बाद इस्कॉन मुंबई को मंदिर पर नियंत्रण मिल गया था।
दोनों सोसायटियों का दावा
यह विवाद दो समान नाम और एक जैसी आध्यात्मिक उद्देश्य वाली सोसायटियों के बीच है। इस्कॉन बंगलूरू का कहना है कि वह दशकों से स्वतंत्र रूप से काम कर रही है और मंदिर का प्रबंधन कर रही है। वहीं, इस्कॉन मुंबई का दावा है कि इस्कॉन बंगलूरू उसकी एक शाखा है और मंदिर सहित सभी संपत्तियां उसके अधिकार में हैं। इस्कॉन मुंबई राष्ट्रीय सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 और बॉम्बे पब्लिक ट्रस्ट अधिनियम, 1950 के तहत पंजीकृत है।