समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा है कि भारतीय जनता पार्टी ने प्रदेश में स्वास्थ्य सेवायें चौपट कर दी हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र, जिला अस्पतालों से लेकर मेडिकल कालेजों तक में न दवायें हैं, न डॉक्टर। आम आदमी सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं से महरूम है।
अखिलेश जी की आलोचना से ऐसा लगता है कि भाजपा ने सत्ता में आते ही अस्पतालों को चौपट कर दिया। उनके (सपा के) राज में स्वास्थ्य सेवायें इतनी बेहतर थी कि छींक आते ही सरकारी अस्पतालों के डॉक्टर झोला उठा कर इलाज करने मरीज के घर पहुंच जाते थे।
सपा नेता के कथन में आधा सच, आधा झूठ है। सरकारी अस्पताल न हों तो जनता में त्राहि-त्राहि मच जाए। फिर भी यह सच्चाई है कि सरकारी चिकित्सा व्यवस्था में सब कुछ ठीक ठाक नहीं है, अधिकांश चिकित्सकों व स्टाफ में सेवाभाव की कमी है, ड्यूटी की खानापूरी करना, वेतन-भत्ते लेना और मौका लगे तो जेबें गर्म कर लेना इनकी दिनचर्या में शामिल है।
चिकित्सकों द्वारा फर्जी मेडिकल सर्टिफिकेट, ड्यूटी में लापरवाही के अनेक मामले प्रकाश में आते रहते हैं। पिछले महीने ही मुजफ्फरनगर के शाहपुर के सरकारी अस्पताल के एम्बुलेंस चालक व परिचालक की लापरवाही से एक व्यक्ति की जान चली गई क्योंकि दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल शख्स की इसलिए मौत हो गई कि एम्बुलेंस में डीजल भरवाने का बहाना कर घायल को पहले मंसूरपुर लाया गया। गाड़ी में 93 कि.मी. चलने का तेल पहले से मौजूद था किन्तु मरणासन्न मरीज को मुजफ्फरनगर के जिला अस्पताल लाने में नाहक ही दो घंटे लगाये गए, जबकि शाहपुर से सीधे मुजफ्फर नगर आने में मात्र 40 मिनट लगते।
संवेदनहीनता तथा कफनखसोट जैसी कलुषित मानसिकता की शर्मनाक घटना तब प्रकाश में आई जब मुजफ्फरनगर की मदीना कॉलोनी निवासी 19 वर्षीय अनस ने 30 अप्रैल को शराफत, दिलशाद नौशाद द्वारा प्रेम प्रसंग का लांछन लगाने पर आत्महत्या कर ली। परिजन पोस्टमार्टम कराने पहुंचे तो उनसे 10 हजार रूपये की रिश्वत, शराब के लिए 2000-2000 रूपये मांगे गए। एक किसान संगठन के लोगों ने जिला अस्पताल पहुंच कर हंगामा किया। इस पर डॉ. अजय प्रताप को खतौली से चरथावल और फार्मेसिस्ट दीपक को शाहपुर स्थानान्तरित कर दिया गया। स्वीपर धीरेन्द्र को निलंबित और सफाई कर्मी सुनील को बर्खास्त कर दिया गया यानी पोस्टमार्टम में रिश्वत खोरी करने की गाज एक अदने संविदाकर्मी पर गिरी।
अस्पताल के डॉक्टर्स कैसे लीपापोती करते हैं, इसका उदाहरण भी सामने आया। भोपा थानाक्षेत्र के निरगाजनी ग्राम निवासी सुमित की पत्नी पूनम नई मंडी, मुजफ्फरनगर के प्राइवेट अस्पताल में भर्ती हुई। 28 फरवरी, 2025 को पूनम के पेट में असहनीय दर्द हुआ। अस्पताल के चिकित्सक ने सहायता करने के बजाय पूनम के मुंह पर चांटा मार कर चुप रहने को कहा। हालत बिगड़ती देख पूनम को हायर सेंटर ले जाने को कहा गया। मेरठ ले जाते हुए रास्ते में ही मृत्यु हो गई।
लापरवाही का शोरशराबा मचने पर मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने सरकारी डॉक्टरों की टीम से जांच कराई। टीम ने प्राइवेट अस्पताल के कथन की पुष्टि की कि मरीज का पेट पहले से संक्रमित था। पीड़ित पक्ष का कहना है जांच में घालमेल हुआ है। सांठगांठ के तहत प्राइवेट अस्पताल को क्लीन चिट दी गई।अब चिकित्सकों की दूसरी जांच टीम बनी है, परिणाम क्या निकलेगा, कयास लगाना बेमानी है।
सरकार स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार करने में लगी है। अस्पतालों की स्थिति भी कागजों में सुधर रही है। मुजफ्फरनगर जिला अस्पताल का स्तर 21वें से 7वें पायदान पर पहुंच गया है। शासन प्रत्येक मंडल में एक मेडिकल कॉलेज, जिला अस्पतालों में कैंसर टेस्ट चिकित्सा तथा सामुदायिक व प्राथमिक स्वास्थ केन्द्रों पर हर प्रकार के टेस्ट की सुविधा उपलब्ध कराने में जुटी है। सचल चिकित्सा वाहनों की संख्या में वृद्धि तथा आयुर्वेदिक व होम्योपैथी यूनानी चिकित्सा की सुविधा प्रदान करने में लगी है।
स्वास्थ्य विभाग के वरिष्ठ अधिकारी, मंत्री, जिला अधिकारी समय समय पर अस्पतालों का निरीक्षण करते हैं। यक्ष प्रश्न यह है कि अस्पतालों की सेहत फिर भी क्यों नहीं सुधरती? क्या पैसे की भूख का रोग असाध्य हो चुका है?
गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’