शिवसेना (यूबीटी) के सांसद संजय राउत ने रविवार को कहा कि विपक्षी गठबंधन इंडिया में शामिल दलों को आतंकवाद के खिलाफ भारत की प्रतिबद्धता दिखाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न देशों में भेजे जा रहे सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का बहिष्कार करना चाहिए था। उन्होंने यह प्रतिक्रिया “ऑपरेशन सिंदूर” के संदर्भ में दी। राउत ने आरोप लगाया कि यह प्रतिनिधिमंडल सरकार के “गलत कार्यों” का बचाव करने के लिए बनाया गया है।
राउत ने कहा कि इस तरह का प्रतिनिधिमंडल भेजने की जरूरत नहीं थी, खासकर सरकार के खर्चे पर। उनका कहना था कि विदेशों में पहले से ही राजदूत काम कर रहे हैं। उन्होंने इंडिया गठबंधन से कहा कि उन्हें इस प्रतिनिधिमंडल का बहिष्कार करना चाहिए क्योंकि वे सरकार के बनाए जाल में फंस रहे हैं और देश की बजाय सरकार के पापों का बचाव कर रहे हैं।
इसके अलावा, राउत ने यह सवाल भी उठाया कि इस प्रतिनिधिमंडल को लेकर शिवसेना (यूबीटी), तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) जैसे दलों से कोई सलाह क्यों नहीं ली गई। उन्होंने कहा कि शिवसेना सांसद श्रीकांत शिंदे को प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व दिया गया, जबकि उनकी पार्टी के पास लोकसभा में पर्याप्त संख्या है और उन्हें भी नेतृत्व का मौका मिलना चाहिए था। उन्होंने यह भी पूछा कि इसे सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल कैसे कहा जा सकता है।
केंद्र सरकार के इस प्रयास के तहत 51 राजनीतिक नेता, सांसद और पूर्व मंत्री सात अलग-अलग समूहों में विभाजित होकर 32 देशों और यूरोपीय संघ के मुख्यालय ब्रसेल्स की यात्रा करेंगे। इनका उद्देश्य वैश्विक मंच पर भारत की आतंकवाद विरोधी नीति को प्रस्तुत करना है। इन सात प्रतिनिधिमंडलों का नेतृत्व बैजयंत पांडा, रविशंकर प्रसाद (बीजेपी), संजय कुमार झा (जेडीयू), श्रीकांत शिंदे (शिवसेना), शशि थरूर (कांग्रेस), कनिमोझी (डीएमके) और सुप्रिया सुले (एनसीपी-एसपी) कर रहे हैं। इनमें 31 नेता एनडीए से और 20 गैर-एनडीए दलों से शामिल हैं।
संजय राउत ने कहा कि इस तरह का प्रतिनिधिमंडल जल्दबाजी में भेजने की कोई जरूरत नहीं थी। उन्होंने विपक्ष की ओर से ऑपरेशन सिंदूर और पहलगाम हमले पर संसद में विशेष सत्र बुलाने की मांग का भी समर्थन किया, जिसे सरकार स्वीकार नहीं कर रही है। साथ ही उन्होंने सवाल उठाया कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत और पाकिस्तान के बीच कौन सा ऐसा समझौता कराया है जिसके तहत भारत ने जमीन, हवा और समुद्र में सैन्य कार्रवाई रोकने पर सहमति दी है।
ट्रंप के दावे के अनुसार, उनके प्रशासन ने भारत और पाकिस्तान के बीच “परमाणु संघर्ष” को टाल दिया था और उन्हें कहा था कि यदि वे संघर्ष समाप्त करते हैं तो अमेरिका उनके साथ व्यापक व्यापार करेगा।